खुशियों का स्कूल | KHUSHIYON KA SCHOOL

KHUSHIYON KA SCHOOL by अरविन्द गुप्ता - ARVIND GUPTAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ दशक पहले तक बच्चों की स्कूल में बहुत पिटाई होती थी । पर अब इसमें कुछ बदलाव आया है, और शिक्षा कुछ बाल- केंद्रित हुई है। कई प्रगतिशील स्कूल खुले हैं। यहां पर शिक्षकों का रोल बच्चों के सर्वागीण विकास पर ध्यान देना है, न कि उनके दिमाग में सिर्फ ज्ञान ठूसना है। कोई भी शिक्षक बच्चों को कभी बोलना नहीं सिखाता है। फिर भी सभी बच्चे स्वाभाविक रूप से अपने आप बोलना सीख जाते हैं । शायद अन्य कुशलतायें भी बच्चे इसी तरह स्वाभाविक रूप में सीख सकते हैं । इंग्लैंड में इसी प्रकार का एक स्कूल है - नाम है पार्क स्कूल । यहां 11 साल उग्र तक के बच्चे पढ़ते हैं | यहां बच्चे खुश रहते हैं और उनके जिज्ञासु दिमाग असंख्यों संभावनाओं को खोजते हैं । स्कूल में कुशल और निष्ठावान शिक्षकों की एक टीम है, जो बच्चों को अपने दिल से चाहते हैं । टीम के लीडर हैं क्रिस निकोल। उनका कहना है, ““सब बच्चों को एक खुशहाल बचपन मिलना चाहिए। यहां बच्चों को खोजने की पूरी आज़ादी 28 है। मुक्त बच्चे हमेशा ही नई जानकारियां खोजते हैं | वह दुनिया को जानने और समझने के लिए तत्पर होते हैं। वह इस बदलते संसार में अपना स्वयं का रोल ढूंढने का लगातार प्रयास करते हैं।'' शिक्षक को एक संवेदनशील मार्गदर्शक होना चाहिए। शिक्षक को ऐसी अड़चनें नहीं खड़ी करनी चाहिए, जिनसे बच्चों के सीखने की ललक ही खत्म हो जाए। स्कूल के नकारात्मक अनुभवों के कारण न जाने कितने ही लोगों को गणित और पी. टी. से सारी ज़िंदगी के लिए नफरत हो गई है। बाल-केंद्रित शिक्षा देने के लिए पार्क स्कूल में सामान्य स्कूलों की तमाम स्थापित मान्यताओं को त्याग दिया गया है। स्कूल का माहौल एक दम सहज है जिसमें बच्चे खुश रह सकें । बच्चे शिक्षकों को उनके नाम से बुलाते हैं । स्कूल की कोई यूनीफार्म (गणवेश) नहीं है। हर समय यहां पर छोटे और बड़े बच्चों को एक साथ खेलते हुए देखा जा सकता है। खेलने का बहुत सा सामान है। एक सब्जी का बगीचा है, जिसकी देखभाल बच्चे ही करते हैं।




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