बाल ह्रदय की गहराइयाँ | BAL HRIDAY KI GEHRAIYAN

BAL HRIDAY KI GEHRAIYAN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhवसीली सुखोम्लीन्स्को - VAISILY SUKHOMLINSKY

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वसीली सुखोम्लीन्स्को - VAISILY SUKHOMLINSKY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लाए थे। युद्ध की ज्वाला ने इस नन्हे बालक को भी झलसा दिया था। गांव को फ़ासिस्टों से मुक्त कराए जाने के कुछेक सप्ताह पश्चात कोस्त्या की गर्भवती माता को कहीं पर लोहे के कुछ टकड़े मिले ( गर्भ के दित पूरे हो चुके थे और किसी भी दिन बच्चे का जन्म हो सकता था )। मां ने सात साल के बड़े बेटे को ये टुकड़े खेलने को दे दिए! इनमें सुरंग का फ्यूज़ भी था। फ़्यूज़ फट गया और बच्चा मारा गया। मां ने फांसी लगा ली। समय पर झा पहुंचे लोगों ने उसको फंदे में से निकाला और मत्य से पहले की प्राणपीड़ा में उसने कोस्त्या को जन्म दिया। भाग्य की बात ही समझो कि बच्चा बच गया: एक पड़ोसिन के दुधमृहा बच्चा था, उसी ने कोस्त्या को अपना दूध पिलाकर बचाया। पिता मोर्चो से लौटकर भाए। -वह बेटे के सदक़े लेते नहीं थकते थे, बड़े लाड़-प्यार से उसकी देखभाल करते थे। बड़े ही नेक स्वभाव की सौतेली मां और दादा भी कोस्त्या को प्यार करते थे। अभी वह पांच साल का भी नहीं हुआ था कि परिवार पर मूसीबत का नया पहाड़ टूट पड़ा। कोस्त्या को बाश में लोहे की कोई चमकीली चीजे दिखी, वह उसे पत्थर पर ठोंक रहा था कि विस्फोट हुआ: खून से लथपथ बालक को अस्पताल पहुंचाया गया। कोस्त्या जीवन भर के लिए अपाहिज हो गया: उसका बायां हाथ और बाईं आंख जाती रही चेहरे में बारूद के नीले कण सदा के लिए घंस गए थे। प्यारे कीोस्त्या, तुम्हें कितना स्नेह, कितना प्यार देना होगा, ताकि तुम्हारा जीवन सुखी हो सके ? तुम्हारे पिता, तुम्हारी नेकदिल सौतेली मां ओर दादा से मैं क्या कहूं, ताकि बे लाड़-प्यार में समझदारी बरतें? तुम केसे पढ़ोगे? तुम्हारे घरवाले कहते हैं कि शभ्रकसर तुम्हारा सिर दुखता टै। केसे तुम्हारे लिए पढ़ाई ग्रासात की जाए, तुम्हारी सेहत सुधारी जाए भौर तुम्हारे मन पर छाए विषाद के कुहासे को कैसे हटाया जाए? तुम्हारे पिता ने बताया है कि तुम कभी-कभी अकेले में रोते हो, हमजोलियों के खेलों में तुम्हारा मन नहीं लगता। मां का हाथ पकड़ भूरी श्रांखोंवाला विचारमग्न-सा स्‍लावा खड़ा है। उसकी मां को एकाकी जीवन जीना पड़ा है। जवानी में वह सूंदर नहीं थी। वह मन में ग्राशा बांधे हुए थी कि एक' दिन उसका भी राजकुमार आएगा, पर कोई उसका पति नहीं बनना चाहता था। यौवन बीत रहा था ओर जीवन पहले की ही भांति घूता था। तभी युद्ध से एक झ्रादमी लौटा- शरीर का कोई हिस्सा तन था, जहां जख़मों के निशान न हों। वह भी जीवन श्८ में एकदम श्रकेला था। उसे इस स्त्री से प्रेम हो गया और वे प्रणय-सृत्र में बंध गए। परंतु सुख के दित पलक जझपकते ही बीत गए : शीघ्र ही पति का देहांत हो गया | मां भ्रब अपता सारा प्रेम बेटे पर उंडेलने लगी। लेकिन वह बच्चे का लालन-पालन ठीक नहीं करती थी। मैंने सुता था कि स्‍्लाबा को लोगों का साथ अच्छा नहीं लगता, वह सारा-सारा दिन घर पर बंँठा रहता है, उसको नज़रों में रूखापन है। मैं लड़के की झ्रांखों में देखता हुं और उनमें तुरंत कटुता का भाव आा जाता है। मैंने अपने भावी छात्रों को जितना निकट से देखा उतना ही अधिक में यह समझता गया कि मेरे सामने जो कार्यभार हैं, उनमें एक शअ्रत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है उन बच्चों को बचपन की ख़ूशियां लौटाना, जो परिवार में इनसे वंचित हैं। स्कूल में तीन साल तक काम करते हुए मैंने कई ऐसे बच्चों को देखा था। जीवन के अनुभव से यह विश्वास दृढ़ हो गया कि अगर बच्चे के मन में भलाई और न्याय में विश्वास नहीं लौटाया जाता, तो वह कभी भी अपने आप को इन्सान महसुस' नहीं कर सकेगा, उसमें झ्रात्मसम्मान की भावना नहीं पनपेगी। किशोरावस्था में ऐसा छात्र सारी दुनिया से खार खा बठता है, उसके लिए कुछ भी पवित्न नहीं होता और वह नहीं जानता कि उच्च आदश्श , उदात्त भावनाएं क्या हैं। ऐसे व्यक्ति के हृदय को निर्मल करना शिक्षक के लिए एक सबसे कठिन कार्य है। और यह सबसे सूक्ष्म तथा सबसे अधिक श्रमसाध्य कार्य ही शिक्षक के लिए मानवविद्या की परीक्षा है। मानवविद , मानवात्मा का ज्ञाता वही है, जो केवल यह देखता और अनुभव ही नहीं करता कि कैसे बच्चे को भलाई और बुराई का ज्ञान होता है, बल्कि जो कोमल बाल- हृदय की बुराई से रक्षा भी करता है। बच्चों की काली, नीली, आसमानी आंखों में झांकते हुए मैं सोच रहा था: क्या मुझमें इतनी नेकी, इतना स्नेह है कि मैं इन बाल-हृदयों को स्पंदित कर सकूं ! मुझे नदेज्दा क्रृप्स्काया के ये शब्द याद झ्राए: “बच्चों के लिए विचार व्यक्तित्व के साथ जुड़े होते हैं। प्यारे शिक्षक के मुंह से निकली बात फ़ोरन उनके मन में बंठेगी और वही बात अगर कोई तुच्छ व्यक्ति , ऐसा व्यक्ति, जिससे उन्हें घणा है, कहेगा, तो उसका उत पर दूसरा ही अ्रसर होगा | ” मुझे बच्चों को शब्दों से और अपने निजी उदाहरण से शिक्षा देनी होंगी। बच्चों को मेरे शब्दों और मेरे कर्मों में भलाई, सचाई रे




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