जानो और बूझो | JAANO AUR BOOJHO

JAANO AUR BOOJHO by बलदेव राज दावर - Baldev Raj Davar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चलना मेरा काम दुनिया में इनसे छोटे पुतले नहीं मिलेंगे, हैंन के ये बराबर “न” नाम पा रहे हैं । हैं ऐटमों के छिलके) छिलके सरीखे हेल्‍के ऐटम की गुठलियों के चक्कर लगा रहे हैं जिन को इन्होंने त्यागा वे कक जिन को इन्हों ने । | थ था थामा वे 'न'- कहला (रहे हैं 2०. दर ” हां? से भागते हैं 'न” न” से हट रहे हैं ” “न'समीप होकरं चिप-चिप्-चिपां रहे हैं इसे पूंछ से लपेटें उसे टांग से घसीटे में ऐटमों श तों की गांठें लगा रहे हैं । “ ऊंची जगह से, मानो, नीचे को आ रहे हैं प्रश्न : हम किन बुतों की, बच्चो, गाथा सुना रहे हैं ? उत्तर : इलेक्ट्रॉन इनको कहते, लक्षण बता रहें हैं । जानो और बूझो




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