हरिश्चन्द्र | HARISHCHANDRA

HARISHCHANDRA by स्वर्गीय गिजुभाई - Swargiy Gijubhai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धमं-संकट हाय ! हाय ! क्‍या इतने पर भी हरिश्चन्द्र सुखी है? क्या भव भी तारामती हँसती है? भला विश्वामित्र से यह कंसे सहा जाता ? श्रभी तो श्राफत के पहाड़ ट्टंगे । विश्वामित्र ने तक्षक नाग को बुलाया और कहा--“जाग्रो फल चुनते हुए रोहित को डसकर उसके प्राण हर लो | तक्षक फुलवारी में जा पहुँचा ! माँ की आज्ञा लेकर, माँ के पर छकर, रोहित बाड़ी में आया है । धूप के मारे गाल लाल सुख हो रहे हैं! मुंह पर पसीना है। हाथ लम्बे कर-करके फूल तोड़ रहा है। लेकिन इतने में तो “भरे मुझे सांप ने डेंस लिया रे ! कहकर रोहित घम्म से नीचे गिर पड़ा, झौर बेहोश हो गया । “दौड़ो रे, दौड़ो ! बेचारे को साँप ने डस लिया ।“ब्राह्मण का एक लड़का धर आया, और खबर सुनाकर चला गया। तारामती गिर पड़ी--बेहोश होकर, चक्कर खाकर गिर पड़ी ! “प्रो रोहित ! प्यारे रोहित ! पर रोहित के पास जाने कौन दे ? मालिक ने कहा--“शाम को जाना । काम-काज पूरा करके जाना । यहाँ लड़के के लिये नहीं झाई हो । काम के लिये बिकी हो 1” हाय ! पहाड़ फट जायें, आसमान टूट पड़े, घरती डगमगा जाये, छाती बिध जाये, ऐसी यह बात थी ! लेकिन तारामती तो दासी थी । दासी का उसका घमं था । शी सी न _-त-त-मेननननन विनय नाना -ब +-ननाननना नम “नमन नन-ननय पतन नकनन+न अमन ..&०.॥४५०-ऋष्णनीायानागान ५४७७७ णण जरा $ तिल +3मननानन-नाम- ५888 ०-%५७+++++8५»>++++मननाहनमनाशन नाश इनक ना पा नाना ३५+५ 3५8 नाननानगा ५५-५० -नननमग-गननन-नैन- ० ना न “बन 3 2 ०क मनन जय ना न न “ता «आज +०--- का... सम्मान जगा 29 हि परों काम किया । टूटे दिल से काम किया । साँक पड़ी और बाड़ी में गई । भरे रे ! रोहित को तो साँप ने डसा था। हाय ! उसके प्राण निकल चके थे । “रोहित, प्यारे रोहित ! अपनी माँ को छोड़कर तुम कहाँ चले गये ? रोहित ! बेटे रोहित ! अरे, एक बार तो बोलो ? एक बार तो उठो ? श्रपनो माँ को भेंटी तो दो । चमा तो लो ? पर रोहित यों कंसे बोलता ? साँप का जहर उसे चढ़ चुका था। और अब, अब तारामती कहाँ जाये ? क्‍या करे ? किसे बुलाये ? अरे रे ! राजरानी की यह कंसी दशा ? .. दोनों हाथों में रोहित को लाश है, और तारामती मरघट की झोर जा रहो है । आकाश धघँघला है । तारों का तेज भी घँघला है। चारों दिशायें ग्राज धृधली-धुंधली हैं । तारामती पर आज दुःख के पहाड़ ट॒ट पड़े हैं । भयावना मरघट ! उलल चिल्ला रहे हैं। फ्िल्लियाँ मंकार रही हैं । घोर अंधेरा है । काड़ियों और भंखाड़ों में भयावने कीड़े भटक रहे हैं, साँप फ़ुफकार रहे हैं, बिच्छ दौड़ लगा रहे हैं, सियार रो रहे हैं, बीच-बीच में भयंकर सनसनाहट और गर्जन-तर्जन सुनाई पड़ता है । भ्रकेली तारामती और गोद में रोहित की लाश है। परे ! प्यारे पुत्र को अपने हाथों केसे दफनाया जाय ? तारामती रो रहो है। शरीर सारा भीग रहा है। राजा की रानी श्राज कहाँ है ? “कौन है उधर, इस काली अंधेरी रात में ? कर चराने के लिए उधर छिपकर कौन बेठा है, यह ?




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