अनदेखे पुल | ANDEKHE PUL

ANDEKHE PUL by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaसे० रा० यात्री -SE RA YATRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'उसने इस बार' क॑ बाद वाक्य पूरा नहीं किया था। उसकी पूर्ति में कछ करके ही जाऊगी ।' अथवा इस बार में यह देखने आई हू कि आप अकेले किस प्रकार रहते है” कितने ही वाक्यों और अर्धो मे हो सकती थी मैने कहा-''में न यहाँ अकेला रहता हूं न परिवार विहीन हूं ” “आंब! ऐसा? लेकिन आपके मित्र ने तो हमे यही बतताया था कि आपने अभी तक परिवार बनाया ही नही है। कुछेक क्षण ठहरकर उसने संज्ञात्मक लहजे से पूछा-“वह कहां गईं है आपकी. ..? मैं ठठाकर हस पडा और बोला-'क्या आप मुझे अंदर आने की इजाजत देंगी ? में आपको आराम से सब कुछ बतला दूंगा।” उसने जीभ काटते हुए कहा-“अरे यह तो मुझसे घोर अनर्थ हो गया। घर का स्वामी दहलीज के बाहर खड़ा सख रहा है और मै मजे मे गप्पे मारते हुए उसे अटकाए हुए हूं।” और यह कहकर वह दरवाजे से एक ओर हटकर खडी हो गई। मैं दरवाजा पार करके सहन में आया तो मैने जोखन को रसोई से बाहर निकलते हुए टेखा | उसके कघे पर जो लाल रग का अगीछा पड़ा था उससे वह हाथ पोछते हुए सहन के उधर खड़ा रहा। गमछे से हाथ पोछले हुए जोखन जिस तरह रसोई से बाहर निकला था उससे यह स्पष्ट हो गया कि वह इस समय राते के खाने के सरजाम में लगा हुआ था ! मै आगे बढकर कमरे के द्वार पर पहचा तो सब्जियों के छाँंक की मसालों को गध मेरे नथुनो में आने लगी। इससे मुझे आभास हुआ कि उर्मिला को आए हुए अभी अधिक समय नही हुआ था । मैंने अपने कमरे में घुसते हुए उर्मिला से पूछा-“क्या आप अकेली ही आइ है?” लेकिन भीतर कमरे का दृश्य देखकर यह बात साफ हो गई कि उर्मिला अकेली नहीं आई थी। एक हालडाल, अटैची और लोहा का बकक्‍्सा कोने को अलमारी के पास रखा था और प्लास्टिक की टोकरी मेरी मेज पर रखी थी। जिसमे बेतरतीब ढंग से बहुत सा सामान ठुंसा पड़ा था। मैने पूछा-“'क्या आपकी गाडी यहां काफी विलब से पहुंची?” वह सफाई-सी देते हुए बोली-““दरअसल आपसे मिलने की बात तो सोचकर चली थी मगर आज नही कभी बाद मे मिलती । वह तो गाडी इतनी लेट हो ग: अनदेखे पुल / 1.




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