टॉम काका की कुटिया | TOM KAKA KI KUTIYA

TOM KAKA KI KUTIYA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaहनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddarहैरियट बीचर स्टो - HARRIET BEECHER STOE

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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हैरियट बीचर स्टो - HARRIET BEECHER STOE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर दो। शेल्वी साहब ने बड़े खिन्‍न मन से हस्ताक्षर करके उसे हेली को सौंप दिया। हेली ने उन्हें एक पुराना बंधक रखा हुआ दस्तावेज वापस किया। इस दस्तावेज के लिए ही शेल्वी साहब को स्वामिभकत टॉम और इलाइजा के ननहें बच्चे हेरी को बेचना पड़ा था। हस्ताक्षर का कार्य निबट जाने के बाद शेल्वी साहब हेली से बोले - तुमने वचन दिया है कि टॉम को किसी निर्दयी बनिए के हाथ नहीं बेचोगे, देखना अपनी बात मत छोड़ना। हैली बोला - जब टॉम को मुझे बेच ही डाला, तब इस बात को बार-बार क्‍यों दुहराते हो? शेल्वी साहब ने कहा - मैंने संकट में पड़कर बेचा है। इस पर हेली हँसते हुए कहने लगा - और मैं भी तुम्हारी तरह संकट में पड़ जारऊँ तो? पर हम खुद उसपर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करेंगे। तुमसे हम कह चुके हैं कि हम दया-धर्म को साथ रखकर अपना कारोबार करते हैं। टॉम और इलाइजा के बच्चे को खरीदकर हेली जब चला गया तो शेल्वी साहब उदास होकर अत्रग बैठ गए और चुरुट का कश खींचते हुए मन-ही-मन विचार करने लगे कि दास-व्यवसायी भी कैसे पाजी होते हैं! खरीदने के क्षण भर पहले ही कहता था कि टॉम को किसी भलेमानस के हाथ बेचूँगा, और इकरारनामे की लिखा-पढ़ी होते ही बदलकर बातें बनाने लगा! 5. एक हृदयविदारक दृश्य पीछे टॉम और इलाइजा के पुत्र को बेचकर शेल्वी साहब रात को अपने सोने के कमरे में जाकर दुखित चित्त से कुर्सी पर पड़े चिट्ठी-पत्री पढ़ रहे थे। उनकी मेम आईने के सामने खड़ी होकर कपड़े बदल रही थी। शेल्वी साहब को इस प्रकार उदास देखते ही उसे इलाइजा के पुत्र के विक्रय की बात याद आ गई। उसने अपने पति से पूछा - आर्थर, वह कौन था, जो आज अपने यहाँ बड़े ठाट-बाट से आया था? उसका नाम हेली है। हेली! यह कौन है? यहाँ क्यों आया था? नेसेज नगर में उससे मेरा कुछ काम पड़ा था, उसी संबंध में आया था। बस, एक ही दिन के काम पड़ने में उसने तुमसे इतनी घनिष्ठता पैदा कर ली कि यहाँ आकर घरवालों की तरह खाया-पिया?




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