मावन जीवन का लक्ष्य | MANAV JEEVAN KA LAKSHA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
531
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्डे भानव-जीवनका लक्ष्य
जिसे दिखछायी देते हैं वह मन्दभागी है। वढ़ मन्दभागी दूसरेके
दोषोंको देखकर अपनेमें दोषोका द्वी संग्रह करता है।
हम जो कुछ देखते-छुनते, कहते, सँधते, रपश करते तथा
विचार करते हैं, वह्दी हमारे मनमें निवास करता है | यदि मनमें
भगवानको बस्साना है तो मगवानकों हद्वी देखना-सुनना-
समझना चाहिये | जैसा द्वमारा मन है, वेसा द्वी हमारा खरूप है।
भ्रद्धामयो5यं पुरुषो यो यच्छुद्रः स एवं सः।
( गीता१७१ ३ )
मनके तामसी होनेसे हमारा खरूप तामसी होगा ओर तामप्तठी
व्यक्तिकी गति नीची द्ोदी है----
धश्धो गउछन्ति चतामसाः 1!
जो लोग साधना करना चाहते हैं भोर अपना कल्याण चाहते
हैं, उनके लिये समझदारीकी बात यही है कि वे भोग-जगतसे यथा-
साध्य बर्चे---जगवकी व्यथ चर्चासे बचचें। साध्कोंके लिये तो
५ ; ८
परदोष-दरशन और परदोप-नचिन्तन बहुत बड़ा विध्न हैं। साधकको
अपने दोप-दशनसे ही अवकाश नहीं मिलना चाहिये---
बुरा जो देखन मे गया छुरा न पाया कोय |
जो तन देखा आपना खुझ-ला छुरा न कोय॥
श्रीनारायणखामीने ठीक कहा है---
कर ३ ञ +
तेरे भाव जो कर भलौ बुरो संसार।
चर
नारायण तू चेंठ कर अपनो भत्रन चुहार ॥
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