मावन जीवन का लक्ष्य | MANAV JEEVAN KA LAKSHA

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्डे भानव-जीवनका लक्ष्य जिसे दिखछायी देते हैं वह मन्दभागी है। वढ़ मन्दभागी दूसरेके दोषोंको देखकर अपनेमें दोषोका द्वी संग्रह करता है। हम जो कुछ देखते-छुनते, कहते, सँधते, रपश करते तथा विचार करते हैं, वह्दी हमारे मनमें निवास करता है | यदि मनमें भगवानको बस्साना है तो मगवानकों हद्वी देखना-सुनना- समझना चाहिये | जैसा द्वमारा मन है, वेसा द्वी हमारा खरूप है। भ्रद्धामयो5यं पुरुषो यो यच्छुद्रः स एवं सः। ( गीता१७१ ३ ) मनके तामसी होनेसे हमारा खरूप तामसी होगा ओर तामप्तठी व्यक्तिकी गति नीची द्ोदी है---- धश्धो गउछन्ति चतामसाः 1! जो लोग साधना करना चाहते हैं भोर अपना कल्याण चाहते हैं, उनके लिये समझदारीकी बात यही है कि वे भोग-जगतसे यथा- साध्य बर्चे---जगवकी व्यथ चर्चासे बचचें। साध्कोंके लिये तो ५ ; ८ परदोष-दरशन और परदोप-नचिन्तन बहुत बड़ा विध्न हैं। साधकको अपने दोप-दशनसे ही अवकाश नहीं मिलना चाहिये--- बुरा जो देखन मे गया छुरा न पाया कोय | जो तन देखा आपना खुझ-ला छुरा न कोय॥ श्रीनारायणखामीने ठीक कहा है--- कर ३ ञ + तेरे भाव जो कर भलौ बुरो संसार। चर नारायण तू चेंठ कर अपनो भत्रन चुहार ॥




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