मंटो | MANTO - KAHANIYAN

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सआदत हसन मंटो - Saadat Hasan Manto

सआदत हसन मंटो - Saadat Hasan Manto

परिचय :-

जन्म : 11 मई 1912, समराला (पंजाब)

भाषा : उर्दू

विधाएँ : कहानी, फिल्म और रेडियो पटकथा, पत्रकारिता, संस्मरण

मुख्य कृतियाँ

कहानी संग्रह : आतिशपारे; मंटो के अफसाने; धुआँ; अफसाने और ड्रामे; लज्जत-ए-संग; सियाह हाशिए; बादशाहत का खात्मा; खाली बोतलें; लाउडस्पीकर; ठंडा गोश्त; सड़क के किनारे; याजिद; पर्दे के पीछे; बगैर उन्वान के; बगैर इजाजत; बुरके; शिकारी औरतें; सरकंडों के पीछे; शैतान; रत्ती, माशा, तोला; काली सलवार; मंटो की बेहतरीन कहानियाँ
संस्मरण : मीना बाजार

निधन : 18 जनवरी 1955, लाहौर (पाकिस्तान)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो समय को केवल अतीत और वर्तमान के दायरो मे सिमटा हुआ और ठहरा हुआ देखते हैं। वे इस भ्रम के शिकार, अपनी खशफहमियो की गत पर नाचने रहते हैं कि राजनीतिक या सामाजिक सत्ता ने उन्हें अपने समय का स्वामी बना दिया है, मगर समय को पकडने की कोशिश या बचकानी इच्छा हवा को मट्ठी मे कैद करने के समान है। समय आगे बढ़ जाता है क्योकि समय सिलसिला है-एक ऐसा सिलसिला जिसका अत कहीं नहीं। समय निरतश्या है, एक अतहीन सिलमिला, जिसकी माला मे व्यक्ति और घटनाएँ और विचार मनकों की तरह पिरोए हुए हैं समय एक शक्ति है, कभी न समाप्त होनेवाली। इस शक्ति को ख़राक मिलती है जीवन के उंम द्वद्ववाद से जो विकासोन्मखी है - समय, नाम और स्थान और भाषा और आस्था और प्रतिरक्षाओं के शिकजो से मकत, हवा के झोंके की तरह एक स्थायी और शाश्वत लहर है जो एक साथ दसो दिशाओं मे सफर करती है, और इस सफर का सिलसिला तो अटरट है ही। मटो एक आदमी था। वह एक विजन , एक सज्ञान, एक तलाश, एक शक्ति, हवा के एक झोके की तरह चितन की एक शाश्वत लहर भी था। इस लहर के सफर का सिलसिला अटट है। वह आज भी हमारे साथ है, और कल भी वे जो हमार बाद आएंगे, उसे अपने साथ पाएँगे। मटो यह जानता था कि आदमी सबसे बडा सच है, और सच अटट होता है। इसलिए मंटो ने आदमी को खानों मे बाँटने का कोई जतन नही किया। वह जानता था कि आदमी अपने-आपकमे एक ऐसी सृष्टि है, एक माइक्रोकॉज्म, जिसमें समय के तमाम आयाम अपना केद्रविद पाते हैं। 16 / दस्तावेज . एक




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