गिजुभाई का शिक्षा में योगदान | GIJUBHAI KA SHIKSHA MEIN YOGDAN - BHARAT LAL PATHAK
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
95
श्रेणी :
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भारतलाल पाठक - BHARAT LAL PATHAK
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बस प्रवृत्ति, प्रवृत्ति, प्रवृत्ति । देर रात गये तक अपने बीमार बच्चों के पास
जागरण करते-करते भी भाई प्रभुलाल के साथ वे मनोविज्ञान की बातें करते
और उनका अधूरा अम्यासक्रम प्रेम के साथ पूरा करते |
गृषाह क्षातत७ ए$ एपाए था. ७जा पी6 ८1१०७४-
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काम का इतना भार शरीर कंसे सहन करे ! उन्हें बुखार और दमा हो
गया । तब भी वे श्रपना काम जारी रखते । ह
नानाभाई अपनी लाक्षणिक शैली में उनसे कहते--“घोड़ा जब थक जाता
है तो कुछ समय के लिए उसे खूंटे बांधघना चाहिए या नहीं ।'
: जबाब में गिजुभाई कहते-- 'नानाभाई, जो लोग लम्बी उम्र माँगते हैं उनसे
बढ़कर कोई मूर्ल नहीं । सौ वर्ष की उम्र मांग कर भी दस वर्ष जितना काम
न करने की बजाय पचास वर्ष को उम्र मांगकर सौ वर्ष का काम कर डालना
मुरभे कही अधिक पसन्द है । जीवन में मंथर गति से रखड़ते हुए काम करने
वाले लोगों से मुझे बहुत चिढ़ है । खाना ग्रौर पीना, सोना और बेठना, काम
करना और अआ्आाराम लेना--ये सारे चौंचले मुझे नहीं आते ।
लेकिन गिजुभाई आप अस्वस्थ हैं तब तक के लिए बाल मन्दिर का काम
आप न करें, नियामक के रूप से यह मेरा ग्रादेश है, नानाभाई ने कहा |
साहब आपका आदेश शिरोधाय है । लेकिन बाल मन्दिर का काम मैंन
करूंगा तो दूसरे दस पचड़े खड़े करूंगा। मुभसे रहा नहीं जाता । इसलिए ऐसा
कोई आदेश देने के बजाय जो काम मैं कर रहा हूं वही करने दें ताकि जल्दी
स्वस्थ हो जाऊंगा !! गिजुभाई ने नम्नता के साथ अपनी बात निवेदित को ।
धीरे-धीरे वे स्वस्थ हो गए। काम की फिर से वही रफ़्तार । बात्राएं भी.
कितनी ही पूरी को । सिंघ तथा बम्बई तक कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया था।
मित्रों, शिष्यों तथा स्नेहियों ने सम्माल थैली अपित की । गिजुभाई ने थेली
ग्रहण करते समय कहा : गुजरात के बालकों का सम्मान है यह। मैं तो मात्र
निमित्त हूँ | आप लोग भी यही समझना । ” और थैली की तमाम राशि बालकों
के कल्याणार्थ लगाने को उन्होंने थैली तत्काल आयोजकों के ही हाथों में सौंप दी ।
कितनी-किंतनी बातें याद करें गिजुभाई की । हीरे को किसी भी कोण से
निरखें, उसकी चमक सदा वैसी ही रहती है प्रखर, दीप्त तथा गरिमापूर्ण ।
सन् 1936 में उन्हें दक्षिणामृरति में काम करते 20 वर्ष पूरे हो गये थे ।
उसी वर्ष वे संस्था से मुक्त हो गये । '
बाद का कुछ अर्सा आराम में बीता। लेकिन एक दिन उनके पुराने मित्र
श्री पोपट लाल चूड़गर आये और उन्हें राजकोट ले गए। एक बार फिर से
अ्रध्ययन मर्दिर तंथा प्रस्तार सेवा की प्रवृत्तियाँ उत्साह के साथ चल पड़ी ।
श्रीमती ताराबेन मोडक के दब्दों में, “बच्चों के प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार करने
वाले समाज को उलट देने के लिए उनके भीतर धधकती हुई जो भाग थी वह
उन्हें शान्त नहीं बैठने देती थी
गया |
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लेकिन दरीर अब उनके कहने में नहीं था, उधर गिजुभाई ऐसे कि जो दायित्व
मं ढ़ लिया, उसे पुरा करके ही चेन लेते । गिराशभाई लिखते हैं कि “आखिरी
अध्यापन मन्दिर की नाव को गिजुभाई ने बाँस का टेका लगाकर ही हांका । द
2 अस्वस्थ: गिजुभाई से मिलने को मित्रगण आते । वे बेठें हो जाते | “आप
हक ' बाकि हम । लेटे रहने से आराम और शान्ति मिलेगी ।' द
ज्भाई हाथों-हाथ जवाब भुगता देते 'शान्ति और चेन की
'मियांजी को शान्ति कब्र में मिलेगी । कह -
. - बीमारी बढ़ती गई | हवा बदलने के लिए उन्हें
आम ल् | ए उन्हें देबलाली ले गए
' नहीं मिला तो पंचगनी गए । तबीयत में सुंधार'का कुछ आवाज परत
लेकिन एकाएक पक्षाघात का आक्रमण हो गया ।
बम्बई लाकर इलाज के लिए हरिकिश्नर दास होस्पीटल में
ः । | : में भर्ती किया ।
वे दिन अत्यधिक कष्ट में बीत रहे थे । उनकी व
णीरुक गे |
हा के ई थी । दांया हाथ
एक रोज पंगलें हरिनाथ की बात चली तो बच्चे की मानिन्द कूठ फटंकर
रो पड़ें । स्थिर हुये तो चिटुठी लिखने लगे, आत्मदशंन करने की मेरी ले।लसा
अधूरी ही रह गई । मैं अपनी बात किसे समभाऊं ।' रा
टेगोर की गीतांजलि का एक पद मु्े स्मरण आ रहा है -
जोदि तोमार देखा न पाई प्रभु
ऐबार ए जीवने,
तोबे तोमाय प्रामि पाईनि जेनी
ेु . से कोथा रब मोने,
जेनो भूले ना जाई वेदना पाई
हे हल शयने स्वप्ने ।
महादेवभाई देसाई तथा पृज्या कस्तुरबा उनसे मिलने को
ह हर झ्राये । बापु
ने भी खेबर पुछी । प्रेम श्रांस बह निकले । या
अंतकाल समीप झा रहा था | आत्मा जाने उस कबीर की पंक््ितियां
“रही थी : 'रहना नहीं देश बिराना है**'4' 1 पा
ग्रौर तब उन्होंने श्राखिरी चिट्ठी लिखी : ग॒ुझी 1510 €्वाशयाक्षा- ह क्षा।
धं०भा।8 गा स्व अआ मेरी मृत्यु पर कोई रोये नही । द
एक शांत द॑ निश्वास*“' 'और बालकों की 'मूंछाली मां का जीवनदीप बुक
बापू ने भी श्रद्धांजलि लिख भेजी : “उनके उत्साह और उनके विश्वास ने
. मुझे हमेशा मुग्घ किया है। उनका काम फलेगा फंलेगा ।'
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