भागो नही दुनिया को बदलो | BHAGO NAHIN DUNIYA KO BADLO
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुनिया नरक है ' मा
सैया--उन सफेद कपड़ोंके भीतर ही भीतर कितना घुआँ उठ रहा है,
यह तुम्हें नहीं मालूम है दुक्खू भाई ! पहिले कभी जमाना था कि विद्या का
मोल जियादा था । इन्ट्रौन्सभी नहीं पास होते थे, कि लोग वकील, मुंसिफ, सदर-
आला हो जाते, लेकिन अब एम्० ००, बी० ए.० पास कर चालीस-चालीस
रुपल्लीकी नौकरीके लिए. इधर-उघर मारे-मारे फिरते हैं । डेढ़ सेरका
आटा, सवासेरका चावल, चार रुपया सेर घी, अढ़ाई रुपया मन ईंधन,
बताओ चालीस रुपपेमें तो अकेले आदमीका भी पेट नहीं भर सकता | फिर
मकानका किराया तिंगुना | पैर पसारने पर इस दीवारसे उस दीवार पहुँच
जायँगे, ऐसी-ऐसी कोठरियोंका किराया ! पाँच रुपया महीना । कपड़ेका दामभी
चौगुना | फिर बाबू अकेले नहीं होते । माता-पिता अपने पैर पर खड़ा करनेसे
पहिले लड़केका ब्याह कर देते हैं और पच्चीस बरसके होते-होते बाबू के चार-
पाँच बच्चे भी हो जाते हैं |अब बेताओ चालीस रुपयेमें वह क्या अपने खायेगे,
क्या बीबी और बच्चोंको खिलायेंगे ! कहाँसे घर भरके लिए कपड़ा ले आयेंगे !
मकानका किराया कैसे दे! लड़कोंकी फीस कहाँसे आयेगी १ यदि लड़के
लड़कियोंकों पढ़ाया नहीं, तो उन्हें भीख भी नहीं मिलेंगी। फिर लड़कियों के
ब्याहके लिए दह्देजका रुपया कहाँसे आये १ उनके घरके घर तपेदिकमें उजड़
: जाते हैं| ठीकसे खाना नहीं, चिन्ताके मारे दिन-रात कलेजा सुलगता रहता है,
दवाका भी ठिकाना नहीं | इतने कमजोर सरीरमें तपेदिक क्यों न घुसे ! ठीक
कहता हूँ दुक्खू भाई ! बाबू लोगोंके घरके घर साफ हो गए । क्
तुखराम--मैं तो समभझता था मैया ! कि बाबू लोग बहुत अच्छी तरहसे
होंगे, खूब लोगोंसे रुपया ऐठते हैं । मक
जैया--सौ में पाँच तो सभी जगह अच्छे मिल जायँगे। जानते नहीं हो,
बकालत पास करके कचहरीमें आधे लोग सिर्फ मक्खी मारने जाते हैं।
इधर-उधरसे माँग-जाँचके पैसे दो पैसेका पू1न खाकर मुँह पर रोब और रोसनी
लाना चाहते हैं ! लेकिन दुक्ख भाई ! रोसनी मुँहमें खैर-चूना लपेटनेसे नहीं
आती | जब आदमीको पेट मर खानेको मिलता है, निचिंत रहता है, रोसनी
अपने आप भलकने लगती है !तुम समझते होगे कचहरीके मुहरिर, थाना
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