भागो नही दुनिया को बदलो | BHAGO NAHIN DUNIYA KO BADLO

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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुनिया नरक है ' मा सैया--उन सफेद कपड़ोंके भीतर ही भीतर कितना घुआँ उठ रहा है, यह तुम्हें नहीं मालूम है दुक्खू भाई ! पहिले कभी जमाना था कि विद्या का मोल जियादा था । इन्ट्रौन्सभी नहीं पास होते थे, कि लोग वकील, मुंसिफ, सदर- आला हो जाते, लेकिन अब एम्‌० ००, बी० ए.० पास कर चालीस-चालीस रुपल्‍लीकी नौकरीके लिए. इधर-उघर मारे-मारे फिरते हैं । डेढ़ सेरका आटा, सवासेरका चावल, चार रुपया सेर घी, अढ़ाई रुपया मन ईंधन, बताओ चालीस रुपपेमें तो अकेले आदमीका भी पेट नहीं भर सकता | फिर मकानका किराया तिंगुना | पैर पसारने पर इस दीवारसे उस दीवार पहुँच जायँगे, ऐसी-ऐसी कोठरियोंका किराया ! पाँच रुपया महीना । कपड़ेका दामभी चौगुना | फिर बाबू अकेले नहीं होते । माता-पिता अपने पैर पर खड़ा करनेसे पहिले लड़केका ब्याह कर देते हैं और पच्चीस बरसके होते-होते बाबू के चार- पाँच बच्चे भी हो जाते हैं |अब बेताओ चालीस रुपयेमें वह क्या अपने खायेगे, क्‍या बीबी और बच्चोंको खिलायेंगे ! कहाँसे घर भरके लिए कपड़ा ले आयेंगे ! मकानका किराया कैसे दे! लड़कोंकी फीस कहाँसे आयेगी १ यदि लड़के लड़कियोंकों पढ़ाया नहीं, तो उन्हें भीख भी नहीं मिलेंगी। फिर लड़कियों के ब्याहके लिए दह्देजका रुपया कहाँसे आये १ उनके घरके घर तपेदिकमें उजड़ : जाते हैं| ठीकसे खाना नहीं, चिन्ताके मारे दिन-रात कलेजा सुलगता रहता है, दवाका भी ठिकाना नहीं | इतने कमजोर सरीरमें तपेदिक क्यों न घुसे ! ठीक कहता हूँ दुक्खू भाई ! बाबू लोगोंके घरके घर साफ हो गए । क्‍ तुखराम--मैं तो समभझता था मैया ! कि बाबू लोग बहुत अच्छी तरहसे होंगे, खूब लोगोंसे रुपया ऐठते हैं । मक जैया--सौ में पाँच तो सभी जगह अच्छे मिल जायँगे। जानते नहीं हो, बकालत पास करके कचहरीमें आधे लोग सिर्फ मक्खी मारने जाते हैं। इधर-उधरसे माँग-जाँचके पैसे दो पैसेका पू1न खाकर मुँह पर रोब और रोसनी लाना चाहते हैं ! लेकिन दुक्ख भाई ! रोसनी मुँहमें खैर-चूना लपेटनेसे नहीं आती | जब आदमीको पेट मर खानेको मिलता है, निचिंत रहता है, रोसनी अपने आप भलकने लगती है !तुम समझते होगे कचहरीके मुहरिर, थाना




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