बंदर की मूंछें | BANDAR KI MOOCHEN

Book Image : बंदर की मूंछें  - BANDAR KI MOOCHEN

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“मेरी कॉफ़ी की फलियाँ मुझे वापिस दो. अब मेरा खुद कॉफ़ी पीने का मन कर रहा है,” बन्दर ने डरावना चेहरा बनाते हुए कहा. “अर्रे! यह कैसे संभव हो सकता है,” उस महिला ने कहा. “हमने तो सब कॉफ़ी ख़त्म कर दी.” “क्या!” बन्दर ज़ोर से चिललाया. “मेरी सारी कॉफी ख़त्म कर दी! मुझे मेरी कॉफ़ी की फल्ियाँ वापिस चाहिए! उन्हें तुरंत मुझे वापिस दो!” उस महिला और बन्दर में काफी देर तक तू-तू मैं-मैं चलती रही. फिर बन्दर को तवे पर एक गर्मागर्म रोटी पकती हुई दिखी. बाकी गुंथा आटा एक बर्तन में रखा था. तवे वाली रोटी काफी छोटी थी! बन्दर ने कहा, “क्योंकि तुमने मेरी कॉफ़ी की फल्नियाँ ली हैं, इसलिए मैं बदले में तुम्हारा आटा ले जा रहा हूँ!”




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