श्रेष्ठ हिंदी कहानियाँ | SHRESTH HINDI KAHANIYAN 1950-1960
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
खगेन्द्र ठाकुर -KHAGENDRA THAKUR
No Information available about खगेन्द्र ठाकुर -KHAGENDRA THAKUR
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डिप्टी-कलक्टरी 5
जमुना अब भी चुप रही और रुपयों को ट्रंक में रखने के लिए उठकर अपने
कमरे में चली गई।
शकलदीप बाबू अपने कमरे की ओर लौट पड़े। पर कुछ दूर जाकर फिर
घूम पड़े और जिस कमरे में जमुना गई थी, उसके दरवाजे के सामने आकर खड़े
हो गए और जमुना को ट्रंक में रुपए बंद करते हुए देखते रहे। फिर बोले,
“गलती किसी की नहीं। सारा दोष तो मेरा है। देखो न, मैं बाप होकर कहता
हूँ कि लड़का नाकाबिल है! नहीं, नहीं, सारी खुराफात की जड़ मैं ही हूँ, और
कोई नहीं।”
एक-दो क्षण वह खड़े रहे, लेकिन तब भी जमुना ने कोई उत्तर नहीं दिया
तो कमरे में जाकर वह अपने कपड़े उतारने लगे।
नारायण ने उसी दिन डिप्टी-कलक्टरी की फीस तथा फार्म भेज दिये।
दूसरे दिन आदत के खिलाफ प्रातःकाल ही शकलदीप बाबू की नींद उचट
गई। वह हड़बड़ाकर आँखें मलते हुए उठ खड़े हुए और बाहर ओसारे में आकर
चारों ओर देखने लगे। घर के सभी लोग निद्रा में निमग्न थे। सोए हुए लोगों की
साँसों की आवाज और मच्छरों की भनभन सुनाई दे रही थी। चारों ओर अँधेरा
था। लेकिन बाहर के कमरे से धीमी रोशनी आ रही थी। शकलदीप बाबू चौंक
पड़े और पैरों को दबाए कमरे की ओर बढ़े।
उनकी उम्र पचास के ऊपर होगी। वह गोरे, नाटे और दुबले-पतले थे।
उनके मुख पर अनगिनत रेखाओं का जाल बुना था और उनकी बाँहों तथा गर्दन
पर चमड़े झूल रहे थे।
दरवाजे के पास पहुँचकर, उन्होंने पंजे के बल खड़े हो, होंठ दबाकर कमरे
के अंदर झाँका। उनका लड़का नारायण मेज पर रखी लालटेन के सामने सिर
झुकाए ध्यानपूर्वक कुछ पढ़ रहा था।
6 अष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1950-1960)
शकलदीप बाबू कुछ देर तक आँखों को साश्चर्य फैलाकर अपने लड़के को
देखते रहे, जैसे किसी आनंददायी रहस्य का उन्होंने अचानक पता लगा लिया
हो। फिर वह चुपचाप धीरे-से पीछे हट गए और वहीं खड़े होकर जरा मुस्कराए
और फिर दबे पाँव धीरे-धीरे वापस लौटे और अपने कमरे के सामने ओसारे
के किनारे खड़े होकर आसमान को उत्सुकतापूर्वक निहारने लगे।
उनकी आदत छह, साढ़े छह बजे से पहले उठने की नहीं थी। लेकिन आज
उठ गए थे, तो मन अप्रसन्न नहीं हुआ। आसमान में तारे अब भी चटक दिखाई
दे रहे थे, और बाहर के पेड़ों को हिलाती हुई और खपड़े को स्पर्श करके आँगन
में न मालूम किस दिशा से आती जाती हवा उनको आनंदित एवं उत्साहित कर
रही थी। वह पुनः मुस्करा पड़े और उन्होंने धीरे-से फुसफुसाया, “चलो, अच्छा
ही है।”
और अचानक उनमें न मालूम कहाँ का उत्साह आ गया। उन्होंने उसी समय
ही दातौन करना शुरू कर दिया। इन कार्यों से निबटने के बाद भी अँधेरा ही
रहा, तो बाल्टी में पानी भरा और उसे गुसलखाने में ले जाकर स्नान करने लगे।
स्नान से निवृत्त होकर जब वह बाहर निकले, तो उनके शरीर में एक अपूर्व
ताजगी तथा मन में एक अवर्णनीय उत्साह था।
यद्यपि उन्होंने अपने सभी कार्य चुपचाप करने की कोशिश की थी, तो भी
देह दुर्बल होने के कारण कुछ खटपट हो गई, जिसके परिणामस्वरूप उनकी पत्नी
की नींद खुल गई। जमुना को तो पहले चोर-वोर का संदेह हुआ, लेकिन उसने
झटपट आकर जब देखा, तो आश्चर्यचकित हो गई। शकलदीप बाबू आँगन में
खड़े-खड़े आकाश को निहार रहे थे।
जमुना ने चिंतातुर स्वर में कहा, “इतनी जल्दी स्नान की जरूरत क्या थी?
इतना सबेरे तो कभी भी नहीं उठा जाया जाता था? कुछ हो-हवा गया, तो?”
शकलदीप बाबू झेंप गए। झूठी हँसी हँसते हुए बोले, “धीरे-धीरे बोलो, भाई,
बबुआ पढ़ रहे हैं।”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...