हाथी की करतूत | HAATHI KI KARTOOT POEMS

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रमेश चन्द्र शाह - Ramesh Chandra Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लड़की चली लड़की चली बतख सी भली बरसते रंग बिरज की गली अरे क्‍या हआ ! बता दो बुआ कहाँ वो सुआ? अरे क्या हुआ? पंख प्रसाद जैसे बहुत बुरा हो हाल बड़ी कसरती काठी है तेल पिए ज्यूँ लाठी है पता नहीं फिर भी क्यूँ लोग कहते हैं इनको डरपोक । मुँह में देखो, है पिस्तौल अगर जमा दें ये दो धौल बड़े-बड़े माँगें पानी वह तो कहो, मेहरबानी नहीं लड़ाई है ठानी। न्ग्




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