एक किशोरी फुलझड़ी सी | EK KISHORI PHULJHADI SEE

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टी० पद्मनाभन - T. PADMNABHAN

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यादों का झरोखा ३ सहायता प्राप्त होती थी। अपने दल के लोगों ने मुझे ऐसे ही एक धनी सज्जन से मिलने तृश्शूर भेजा था। उस सज्जन ने पहले भी हमें मदद पहुंचाई थी। चादर से पूरे सिर को ढके हुए मैं प्लेटफार्म से आगे निकला। मुझे मालूम नहीं था कि किस दिशा में चलना है ? किससे पूछा जाए? मैं झझककर खड़ा रहा। कुली और रिक्शे- वाले मुझे अब तक घेर चुके थे। मेरे हाथ में चमड़े की छोटी-सी अटैची थी। उसे उठाने के लिए किसी कुली को जरूरत नहीं थी। मैं रिक्शे में दूसरों की नजर बचाकर उस सज्जन के घर पहुंच सकता था। मगर मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए में रिक्शेवालों की मदद को ठुकराने पर मजबूर हुआ। अटैची बदन से सटाए मैं उतावली से चल पड़ा। मन में यही दिलासा बांधे कि कोई आसानी से मिल जाए तो उनके विषय में पूछ-ताछ कर लेंगे, जिनसे काम है। कुली छोकरे मेरे पीछे लगे थे। मैं कुछ क्रुद्ध हो उठा। कानी उंगली से उठाने लायक अटैचो ले चलने के लिए और कोई क्‍यों ? जब उन्हें पता लगा कि इस आदमी के पास दाल नहीं गलेगी तब वे एक-एक करके खिसक गए। सिर्फ एक लड़का मेरे पीछे-पीछे आ रहा था। ''बाबू, वह अटैची दीजिए न! मैं ले चलूंगा, आप कुछ भी न दें।'' कहते हुए उसने मेरी अटेची हाथ में ले लोी। मैं गुस्से से कांप उठा। इस छोकरे की यह हिमाकत ! अटैची में गैर-कानूनी घोषित की हुई किताबें, दस्तावेज वगैरह थे। अगर किसी की नजर पड़ जाए तो ? मेरी ही बात नहीं और भी लोग इनसे जुडे थे। सोचा, लड़के को एक थप्पड़ रसीद करूं | किंतु लड़का चिल्ला उठे तो नयी आफत टूट पड़ेगी। इसलिए सिर्फ घूरकर डराया। किंतु उस लड़के पर नजर डाली तो मेरा गुस्सा काफूर हो गया। वह बालक चुहिया- सा थर-थर कांप रहा थ। वह दीनता की पुतली था। फटी-पुरानी कमीज केः भीतर से उसका पीला बदन मुझे अच्छी तरह दिख रहा था। उभरी हड्डियों को उसकी छाती पर एक सलीब टंगी थी जो उसे शायद बोझ लगती होगी। उसकी आंखों में आशा की रोशनी चमकी। वह प्रार्थना थी। मैंने उससे पूछा--'' तेरा नाम कया है ?'' हो सकता है, उसकी जिंदगी में पहली बार किसी ने ऐसी पूछ-ताछ की हो। मैंने उन आंखों को आश्चर्य से खिलते देखा। '*अन्तोणी!'' उसने कुछ झिझकते हुए कहा-- ''अन्तोणी ! तू देखता है न , क्या यह अटैचो ढोने के लिए किसी की जरूरत है ?'' ''बाबू , आप जो चाहें, दे देना। रात को चाय पीने के लिए कुछ नहीं है। आप जहां कहें, पहुंचा आऊंगा। और कोई मौका होता तो मैं खतरनाक बक्सा लिए बातचीत करते हुए न रुकता। लेकिन




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