भोजन की थाली से | BHOJAN KI THALI SE

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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मुहम्मद उमर -MUHAMMAD UMAR

2010 से राजस्थान के अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में गणित के लिए एक संसाधन व्यक्ति के रूप में कार्यरत

.

एसआईईआरटी उदयपुर, राजस्थान (आईजीआईजी राजस्थान) में शिक्षाशास्त्र और पाठ्यक्रम विशेषज्ञ
एकलव्य में अनुसंधान सहयोगी गणित - शैक्षिक अनुसंधान और नवाचार संस्थान, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश।
जागृति बाल विकास समिति, कानपुर, उत्तर प्रदेश में गणित और विज्ञान शिक्षक।
आईआईटी कानपुर में सामाजिक परिवर्तन के लिए एक थिएटर ग्रुप, जन चेतना मंच के संस्थापक सदस्य
...के रूप में भी काम किया |

संपर्क नंबर: 9001565000

ई-मेल आईडी: [email protected]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फरमाइश आ जाने पर वे अपनी इस डायरी का प्रयोग करते थे। वे अपनी बातों को कहते समय वेद, पुराण, श्लोक आदि का काफी प्रयोग करते थे | सरसरी तौर पर अगर कोई उन्हें इस रूप में देखे तो उसे यही लगेगा कि नैतिक शिक्षा, जीवन मूल्यों आदि पर व्याख्यान दिया जा रहा है। लेकिन, थोड़ा गौर से सुनें तो उनकी कई बातें अन्धविश्वासों और पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देने वाली हुआ करती थीं । ऐसे ही एक दिन वे मेरे कक्ष में भी आ गए। प्रार्थना और प्रेरणा गीत के बाद अपनी वार्ता प्रारम्भ कर दी। उन्होंने कहा - प्राचीन काल में भारतवर्ष के ऋषि सिद्धार्थ और अरब देश के ऋषि हसन में बहुत मित्रता थी। एक दिन ऋषि हसन अपनी उड़ने वाली कालीन पर बैठकर ऋषि सिद्धार्थ से मिलने शैक्षणिक संदर्भ अंक-37 (मूल अंक 94) आए। उनकी कालीन रेगिस्तान और सागरों को पार करते हुए ऋषि सिद्धार्थ के आश्रम के पास पहुँची। उन्होंने ऊपर से ही देखा कि बहुत-से पशु- पक्षी आश्रम में स्वतंत्र घूम रहे हैं। कुछ हिरन सिद्धार्थ ऋषि के चरणों के पास बैठे हैं और वे उनका सिर सहला रहे हैं। यह सब देख ऋषि हसन को बहुत अच्छा लगा। वे जैसे ही सिद्धार्थ ऋषि के पास पहुँचे, सारे जानवर और पक्षी डरकर दूर भाग गए। कुछ झाड़ियों के पीछे छिपने लगे। यह सब देख ऋषि हसन को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सिद्धार्थ ऋषि से पूछा, “ये क्या हुआ भाई? ये सब जानवर और पक्षी तो अभी तक आपके पास बेठे थे, अब डरकर इतना दूर क्‍यों चले गए ?” 65




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