अलबर्ट आइन्स्टीन | ALBERT EINSTEIN

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सुबोध महंती -SUBODH MAHANTI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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से शुल्क ले सकता है। आइंस्टीन का आवेदन अस्वीकार कर लिया गया। कहा जाता है कि उनके आवेदन पत्र को अस्वीकृत किए जाने का एक कारण यह था कि बर्न विश्वविद्यालय के भौतिकी के विभागाध्यक्ष ने उनके सापेक्षता सिद्धांत संबंधी लेख को 'समझ में न आने वाला” करार दे दिया। अगले साल वह अप्रशिक्षित व्याख्याता का पद पाने में सफल तो हो गए पर पेटेंट कार्यलिय की नौकरी नहीं छोड़ सके । कारण यह था कि विश्वविद्यालय में प्राप्त पद से उन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता था। बर्न विश्वविद्यालय में सन्‌ 1908/9 की शीतऋतु में आयोजित किए गए उनके शुरूआती व्याख्यानों को सुनने के लिए अधिक छात्र नहीं आए, पर कुछ ही दिनों में उनके सापेक्षता सिद्धांत को एक मौलिक और गहन सिद्धांत के रूप में व्यापक स्तर पर मान्यता मिलने लगी। उसके बाद तो अकादमिक क्षेत्र में उनके लिए अवसरों की भरमार हो गई। सापेक्षता के विशेष सिद्धांत के प्रकाशन के दो वर्ष बाद आइंस्टीन ने अपने सिद्धांत का और विस्तार कर ऐसी निर्देश प्रणालियों (फ्रेम ऑफ रिफरेंस) के सिद्धांत का विकास करने के बारे में सोचना शुरू किया, जिन्हें एक-दूसरे के सापेक्ष त्वरित किया जा सकता था। ऐसा करने से सापेक्षता के विशेष सिद्धांत में उपस्थित प्रतिबंध दूर हो जाते थे। आइंस्टीन ने अनुभव किया कि कुछ अनुमानों को स्वीकार करके त्वरित गति को सापेक्षता के सिद्धांत में समाहित किया जा सकता था। सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के मुख्य निष्कर्ष ये थे : 1. गुरुत्व और जड़ता एक ही परिघटना को व्याख्यायित करने वाले दो शब्द हैं। 2. अंतरिक्ष के बारे में चिंतन करते समय चार आयामों लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और समय पर विचार करना चाहिए। ब्रह्मांड में घटित होने वाली प्रत्येक घटना दिकु और काल के चतुर्आयामी विश्व में घटित होती है। 3. दिक्‌ और काल सूर्य जैसे अत्यधिक द्रव्यमान वाले पिंडों के कारण वक्रिल, हो जाते हैं, अथवा उनमें झोन पड़ जाता है। 4. सूर्य जैसे विशाल पिंड के समीप से गुजरने पर प्रकाश मुड़ जाता है। सन्‌ 1911 में आइंस्टीन ने बताया था कि सूर्य को स्पर्श करने वाले तारों के प्रकाश को विचलित हो कर 1.7 मिनट का चाप बनाना चाहिए। एक पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान एडिंगटन ने इसको मापा। उन्होंने पाया कि तारों क॑ प्रकाश के विचलन से बनने वाला चाप 1.61 मिनट का था। सन्‌ 1919 में एक छात्र ने आइंस्टीन से पूछा कि यदि प्रायोगिक मापन से सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि नहीं होती तो क्या होता, इस पर आइंस्टीन ने उत्तर दिया, “मैं अपने प्रिय ईश्वर के समक्ष दुख व्यक्त करता क्योंकि सिद्धांत तो सही है।'”” सन्‌ 1920 के दशक के प्रारंभ में आइंस्टीन ने एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत पर काम करना शुरू किया और उसमें वह जीवनपर्यत लगे रहे। सन्‌ 1922 में आइंस्टीन को नोबेल पुरस्कार मिला। रोचक तथ्य यह है कि उन्हें यह पुरस्कार गणितीय भौतिकी, विशेषकर प्रकाश-वैद्युत्‌ प्रभाव की खोज के लिए दिया गया था। आइंस्टीन उस समय जापान की यात्रा पर होने के कारण पुरस्कार समारोह में भाग नहीं ले 12 » अलबर्ट आइस्टीन - सापेक्षता सिद्धांत के सस्थापक




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