देवदास | DEVDAS

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शरतचन्द्र चटर्जी -शरतचंद्र CHATTERJEE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिर पार्वती ने भोलानाथ की दुर्दशा की कथा को नए ढंग से स्मरण कर हंसना आरंभ किया-' देव दादा-हि-हि-हि-एक बार ही चूने की ढेर मे हि-हि-हूं-हूं-एकबागी धर्म, चित्त कर दिया.. ' धर्मदास ने सब बाते न समझकर भी हंसी देखकर थोड़ा-सा हंस दिया, फिर हंसी रोककर कहा- “कहती क्यो नही पत्तो, क्या हुआ?' “देवदास ने भूलो को धक्का देकर चूने मे गिरा...हि-हि-हि!' धर्मदास इस बार सब समझ गया और अत्यंत चिंतित होकर कहा-' पत्तो, वह इस वक्त कहां है, तुम जानती हो ?' “तू जानती है, कह दे | हाय! हाय उसे भख लगी होगी।' * भूख लगी होगी, पर मै कहूंगी नही ।' “क्यो नही कहेगी?' “कहने से मुझे बहुत मारेगे। मै खाना दे आऊंगी।' धर्मदास ने कुछ असंतुष्ट होकर कहा-'तो दे आना और संझा के पहले ही घर भुलावा देकर ले आना।' “ले आंऊंगी।' घर पर आकर पार्वती ने देखा कि उसकी मां और देवदास की मां ने सारी कथा सुन ली है। उससे भी सब बाते पूछी गयी | हंसकर, गंभीर होकर उससे जो कुछ कहते बना, उसने कहा। फिर आंचल मे फरूही बांधकर वह जमीदार के एक बगीचे मे घुसी। बगीचा उन लोगो के मकान के पास था और इसी मे एक ओर एक बंसवाड़ी थी। वह जानती थी कि छिपकर तमाखू पीने के लिए देवदास ने इसी बंसवाड़ी के बीच एक स्थान साफ कर रखा है । भागकर छिपने के लिए यही उसका गुप्त स्थान था। भीतर जाकर पार्वती ने देखा कि बांस की झाड़ी के बीच मे देवदास हाथ मे एक छोय-सा हुक्का लेकर बैठा है और बड़ो की तरह धूम्रपान कर रहा है। मुख बड़ा गंभीर था, उससे यशेष्ट दुर्भावना का चिन्ह प्रकट हो रहा था। वह पार्वती को आयी देखकर बड़ा प्रसन्‍न हुआ, किंतु बाहर प्रकट नही किया। तमाखू पीते-पीते कहा 'आओ।! पार्वती पास आकर बैठ गयी। आंचल मे जो बंधा हुआ था, उस पर देवदास की दृष्टि तत्क्षण पड़ी । कुछ भी न पूछकर उसने पहले उसे खोलकर खाना आरंभ करते हुए कहा-'पत्तो पंडितजी ने क्या किया?! “बड़े चाचा से कहा दिया।' देवदास ने हुंकारी भरकर, आंख तरेरकर कहा-' बाबूजी से कहा दिया?! हां।' “उसके बाद?! तुमको अब आगे से पाठशाला नही जाने देगे। 'मै भी पढ़ना नही चाहता।' इसी समय उसका खाद्य-द्रव्य प्राय: समाप्त हो चला। देवदास ने पार्वती के मुख की ओर देखकर कहा- 'संदेश दो।'




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