महोदय पंडित | MAHOSHADH PANDIT
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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भदंत आनंद कौसल्यायन -Bhadant Aanand Kausalyayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14 महोषध पण्डित
को प्रकट करू ! उसने आदमी का रूप बनाया और रथ का पिछला
हिस्सा पकड़ दौड़ने लगा। रथ में बठे आदमी ने पूछा, “तात !
क्यों आया है ?
“तुम्हारी सेवा करने के लिए ।”
उसने अच्छा' कह स्वीकार किया। जब वह रथ से उतर शारीरिक-
कृत्य करने गया, शक्त ने रथ में बेठ ज़ोर से रथ हाँक दिया। रथ के
मालिक ने उसे रथ लिए जाते देखा तो टठोका, “रुक-रुक ! मेरा रथ
कहाँ लिए जाता है ? ”
“तेरा रथ दूसरा होगा। यह तो मेरा रथ है।”
दोनों झगड़ते हुए शाला-द्वार पर झा पहुँचे । महोषध पण्डित ने
भगड़े का कारण जान दोनों से प्रइन किया, मेरे निर्णय को स्वीकार
करोगे ?”
“हाँ ! स्वीकार करेंगे।”
“मैं रथ को हाँकता हूं। तुम दोनों रथ को पीछे से पकड़कर
हा । जो रथ का स्वामों होगा, वह रथ नहीं छोड़ेगा; दूसरा छोड़
गा।'
यह कहकर उसने अपने आदमी को भ्राज्ञा दी कि रथ हाँके । उसने
वेंसा ही किया। दोनों जने पीछे से रथ को पकड़े चले । रथ का
मालिक थोड़ो दूर जाकर, रथ के साथ दौड़ न सकने के कारण, रथ
को छोड़ खड़ा हो गया। शक्र रथ के साथ दौड़ता ही चला गया ।
महोषघ्॒ पण्डित ने रथ रुकवा आदमियों को कहा, “एक आदमी
थोड़ी ही दूर जा रथ को छोड़ खड़ा हो गया | यह रथ के साथ-साथ
दोड़ता हुआ रथ के साथ ही रुका । इसके दरीर में पसीके की बूँद
भो नहीं है । न साँस ही चढ़ी है। यह निर्भय है। इस की पलके भो
नहीं हैं । यह देवेन्द्र श्र है ।”
तब उसने प्रदन किया, “क्या तू देवराज इन्द्र है ?”
हा हर
“किसलिए आया ? ”
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