हमारा हिंदुस्तान | OUR INDIA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
77
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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मिनू मसानी - Minu Masani
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छोगों की याद दिलायेंगे। डीक है। हमारे शहरों क अधिकतर रहनेवाल्क
गरीब ह--बहुत गुरीब हैं। वे शहर के गन्दे से गन्दे, अंधियारे, भयानक
हिस्सों में तंग हालत में रहते हैं। एक छांट सर अधियारे, धुएं से भरे कमर
म चार-पाच्, कभी-कभी दस-दस आदमी सोते हैं ओर कम से कम खाते हैं ४
उनके बच्चां को पढने छिखने आर कुछ हिसाब छगा लेने से अधिक शिक्षा
नहीं मिल पातो और यह भी वे स्कूल छोड़ते ही चट-पट भूल जात हैं । हमारे
देश के साधारण छोगों की अवस्था भयानक है। हमारे शहरों की मिलों और
कारखाना प्र काम करने वाले मजदूर, जिन्ह हम शहर म॑ रहने वाले बहत ही
गरीब समझत हैं, महीने में १७) रु० से ७०) रु० तक पैदा कर छेते हैं और
इसा के सहार वह अपने पूरे परिवार का पालन करते हैं | यह क्या कप
भयानक है। आपका क्या विचार हे? अगर आपको अकले इतने पर
जीवनयापन करना हो तो बड़ी परेंशानी होगी । मगर एक मजदूर की आमदनी:
हमारे उन करोड़ों देशवासियों के मुकाबिले, जो कि गाँवों में रहते हैं और खेती
करते हैं, हमारे भोजन के छिग्रे अन्न और कपडों के लिए रुई पैदा करते हैं,
राजसी हं ।
हिंदुस्तान के छोग एक समय भी भर पेट खाना नहीं खा पाते--उस
मान मे जिम माने में कि खाने का प्रयोग इंगलिस्तान, अमेरिका या आस्टेलिया
में होता हं-“-थह हसने इतना सुना कि बड़े होते-होते हमें इस बात को विचार
करके कोई दुःख नहीं होता। फिर भी इसमें कोड अतिशायोक्ति नहीं हैं ॥
ग्रह एक कठोर सत्य हैं। विश्वविद्यालयों के विद्वान अध्यापकों ने अनमान लगाया
है कि हमार दंश का साधारण किसान, एक खत्री आ।र तीन बच्चों के साथ,
२७ ) रू० महीने यानी करीब १) २० रोज पर जीवनयापन करता हैं ।
उनके द्रित्र घरों म गंदगी और भूख का ऐसा आतंक रहता है कि उनके:
ननन्हें बच्चे वर्ष भर के अन्दर ही मविखियों की तरह मरने छगते हैं। इसी
दुःखद बस्तु को शिशु मृत्यु का बड़ा नास दिया जाता हे। इस चिन्न से
भालस होगा कि शिश मृत्य संख्या हिन्दुस्तान मे स्वीडेन से चार गुना
अंचक है |
अच्छा बतछाइय आप कितने दिन जोन की आशा रखते हैँ ? “ सत्तर
या कम से कम, साठ वष ? तो आए कहेंगे ही । खर, आशावादियों का क्या
कहना हे १ मगर मुझे सय्र है कि आप सब स्कूल के लड़के या छड़क्रिया,
जापान
400, पिली
हिन्दुस्तान
जमेनी ग्रेट ब्रिटेन से, रा, अ. स्वीडेस
१४७३७
एक साधारण हिन्दुस्तानी होने की हेसियत से, अधिक से अधिक तीस व
जीने की आशा कर सकते हैं ! यह बात आपको अच्छी नहों छूगती। क्यों,
दीक हैं न? मगर जुरा इस बात का तो विचार कीजिये कि अगर आप अपने
जीवन का पहछा सार पार कर चके हैं आप भाग्यशाली हैं ।
उदाहरण के लिये, अगर आपके घर में कोई बच्चा, भाई
बहिन, पैदा हो--३े खिये | अपने बाप या मा से इसे न कहियेगा, इसे सुन
कर उन्हें दुःख होगा, बडों का यही हाल हें--तों यह कहते दुःख होता हैं कि
चह बच्चा, २७ वर्ष की उम्र में इस संसार से कूच कर जायगा |
इस चित्र में आप सभी राष्ट्रों को जीवनपथ पर साथ साथ चलते देख रहे
हैं। उस फ्रांसीसी को देखिये वह ६० वर्ष की उम्र तक किस झान से बहुता
चला जा रहा है | सत्तर वर्ष के पास पहुँचतें-पहुचते भो थह न्यूजीलेण्ड का
या
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