बच्चे असफल कैसे होते हैं ? | HOW CHILDREN FAIL?

HOW CHILDREN FAIL? by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaजॉन होल्ट -JOHN HOLT

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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24 बच्चे असफल कैसे होते हैं जाए। बस बुदबुदा कर कुछ अफ्रेंच आवाजें निकालने की जरूरत है| शिक्षक उस ध्वनि से ही घबरा जाएगा और तब विशुद्ध फ्रेंच उच्चारण में उत्तर दे डालेगा| छात्र तब शिक्षक के पीछे-पीछे उत्तर दोहरा सकेगा और तब तक उसका खतरा भी टल चुका होगा! . भैम थ्योरी के तहत ऐसी पैंतरेबाजी को “मिनिमैक्स” कहते हैं, जो जीत की सम्भावनाएँ बढ़ाए और हार की सम्भावनाओं को घटाए। बच्चे ऐसी नीतियाँ रचने में माहिर होते हैं। वे अपनी अटकलों और तुक्‍कों को ढॉपने-लुकाने के रास्ते भी ढूँढ लेते हैं। कुछ दिनों पहले हम अपनी कक्षा में तौल का खेल कर रहे थे। खेल के लिए हमारे पास लकड़ी का एक छड़ीनुमा तराजू था जो बीचों-बीच एक हुक पर टिका था| उसकी दोनों बाजुओं पर समान दूरी पर निशान लगे हुए थे। इस खेल में तराजू के हुक को इस तरह पकड़ा जाता है कि वह स्वतंत्र न लटक सके और उसके एक ओर कोई भी वजन लटका दिया जाता है। अब एक दूसरा वजन बच्चे को दिया जाता है, जो पहले वजन के बराबर, उससे कम या ज्यादा भी हो सकता है| उस बच्चे को बांट के वजन का अंदाज लगा कर उसे तराजू के दूसरे सिरे पर ठीक उस जगह लटकाना होता है, जहाँ उसे लगे कि छड़ी संतुलित रहेगी। तराजू को स्वतंत्र लटकाने से पहले ही टोली के हर छात्र से पूछा जाता है कि वजन सही जगह लटकाया गया है या नहीं। इसके बाद ही तराजू को मुक्त छोड़ा जाता है। एक दिन एमिली की वजन लटकाने की बारी आई। काफी सोचने के बाद उसने वजन गलत जगह्ट लटकाया। टोली के सब बच्चों ने एक के बाद एक यही कहा कि वजुन सही जगह नहीं लगा है और डंडी संतुलित नहीं रहेगी। एमिली का आत्मविश्वास धीरे-धीरे कम होता गया और जब हुक खोलकर डंडी के संतुलन को जाँचने का समय आया तो उसने भी चहककर कहा, “मुझे भी नहीं लगता कि तराजू सीधा रहेगा।” उसकी आवाज, उसके लहजे का वर्णन शब्दों में संभव नहीं है। उसने उस समय अपने आपको उस बेवकूफ बच्ची से पूरी तरह दूर कर लिया था, जिसने उस ऊलजलूल स्थान पर वजन लटकाया था! जैसे ही उसने हुक खोला और पैंतरेबाजी 25 :फाससकमतरफसकाकमन यार कपल डलख कमल 5002 >खट2क तझजू झटके से एक ओर को लटक गया तो लगा मानो वह उबर गई हो। कई बच्चे अपनी अटकलों को छुपाने की चेष्टा अवश्य करते हैं, पर ऐसे बच्चे बहुत ही कम होते हैं जो लज्जा के भाव से इस कदर मुक्त हों। बल्कि कुछ बच्चे तो अपने विश्वासों को स्वीकारने का साहस न होना ही लज्जाजनक मानते हैं| में अब यह देख सकता हूँ कि उस समय एमिली के बारे में मेरी धारणा गलत थी। उसने “माइक्रोस्कोपिक” शब्द लिखने का, शब्दों को उलटकर लिखने का या वजन लटकाने का काम किया ही नहीं था| उसके दिमाग में जो कुछ रहा होगा वह शायद यह था कि यह शिक्षक मुझसे कुछ करवाना चाहता है| मुझे तो पता ही नहीं है कि वह क्‍या काम करवाना चाहता है? फिर मुझे क्‍यों परेशान करते हैं ये लोग? मैं कुछ भी किए देती हूँ, शायद तब ये मेरा पीछा छोड़ दें! [_] मई 10, 1958 बच्चे अक्सर शिक्षकों से उत्तर उगलवाने की नीतियों को खुल्लम-खुल्ला अपनाते हैं| में एक बार किसी शिक्षिका की कक्षा का अवलोकन कर. रहा था। वे शब्द-भेद की परीक्षा ले रहीं थीं। बोर्ड पर उन्होंने तीन कॉलम बनाए - संज्ञा, विशेषण व क्रिया के। परीक्षा का तरीका यह था कि वे कोई एक शब्द बोलतीं और बच्चों से पूछतीं कि उसे किस कॉलम में रखा जाए। अधिकांश शिक्षकों की ही तरह इस शिक्षिका ने भी दो बातों पर ध्यान नहीं दिया था। पहली बात यह कि उसके दिए गए कई शब्द एक से ज्यादा कॉलम में लिए जा सकते थे। दूसरी यह कि वाक्य में शब्दों का प्रयोग ही यह तय करता है कि वह संज्ञा है, विशेषण है या क्रिया है। जाहिर है कि बच्चों ने अपनी आजमाई हुई नीति अख्तियार की - अटकलें लगाने और तुक्‍्के भिड़ाने की। शब्द-भेद बताते समय उनकी नजरें शिक्षिका के चेहरे पर गड़ी होतीं ताकि उन्हें पता चल सके कि उत्तर सही है या नहीं। इस शिक्षिका के चेहरे पर हाव-भाव नहीं पढ़े जा सकते थे, पर फिर




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