मेहनत की महक | MEHNAT KI MEHAK

MEHNAT KI MEHAK by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaडॉ० रमेश मिलन -DR. RAMESH MILAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गौरव ः 11 एक दिन श्री शास्त्री बड़ी लगन के साथ कक्षा में छात्रों को पढा रहे थे। छात्र भी मन लगाकर पढ़ रहे थे। तभी एक छात्र ने गेट पर खडे होकर पूछा, “सर क्या मैं अंदर आ सकता हूं?” शास्त्री जी. ने मुड़कर छात्र की ओर देखा। उन्हें थोड़ा गुस्सा आया। बोले, “गौरव, क्या यह समय तुम्हारे विद्यालय आने का है? तुम्हें मालूम है दूसरा पीरियड समाप्त होने जा रहा है। तुम अच्छी तरह जानते हो कि अनुशासनहीनता मुझे जरा भी पसंद नहीं है। यह ठीक है कि तुम पढ़ाई में होशियार हो, लेकिन विद्यालय के भी कुछ नियम हैं। जिनका पालन मैं भी करता हूं। ठीक है, अब अंदर आओ, लेकिन विद्यालय देर से आने का दंड तो तुम्हें अवश्य ही मिलेगा।”' लेकिन सर, मेरी बात तो सुनिए, मैं तो मैं तो . . . ” गौरव कहता ही रह गया। शिक्षक महोदय ने मौरव की कोई बात नहीं सुनी और कक्षा के पीछे वाली बेंच पर खड़े रहने का निर्देश दिया गौरव उदास मने से बेंच पर खड़ा हो गया। बेंच पर खड़े-खड़े दो पीरियड और बीत गये। उसकी टांगे भी जबाब देने लगी थीं। वह बार-बार गिरते-गिरते बचता। परंतु शास्त्री जी कौ आज्ञा भंग करने की हिम्मत किसकी थी? गौरव बार-बार साहस जुटाता और फिर संभल कर खड़ा हो जाता। जैसे-तैसे उसने विद्यालय का समय बिताया। छुट्टी होने पर अपने एक साथी का सहारा लेकर गौरव घर पहुंचा। घर पहुंचते ही वह बिस्तर पर लुढ़क गया। गौरव की मां ने उसे इस तरह बिस्तर पर पड़े देखा तो दौड़कर उसके पास... आईं। मां ने जैसे ही. गौरव के शरीर को छुआ तो घबराते हुए बोलीं, ''ओरे। तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है। शरीर गरम तवे की तरह जल रहा है।'' मां ने तुरंत गौरव बहिन को डॉक्टर को बुला लाने के लिए भेजा। गौरव की यह हालत देखकर मां की आंखों में आंसू बहने लगें। गौरव ने मां के आंसू पोंछते हुए कहा, “मां, तुम चिंता मत करो। मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा।” “लेकिन अचानक यह हुआ कैसे?” मां ने व्याकुलता से पूछा “मां छोड़ो न, बुखार ही तो है, उतर जायेगा।'' गौरव मां को ढांढस बंधाते हुए बोला।




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