अंधा कुआँ | ANDHA KUAN PLAY -
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूका
सूका
भगौती
सूका
अंधा कुआँ ७
तीस वे से कम की न होगी | मटमेली-सी मोटी साड़ी
हे । बदन पर जो यबरून का सलूका पहने है, उसकी
दोनों बाहें फटी हैं| लगता है, महीनों से पानी से भेंट
नहीं हुईं, फिर तेल-फुलेल की बात ही क्या! सिर
के बाल शस्त-व्यस्त हैँ | कनपटियो पर बाल' की
उलभी हुई लटें कूल रही हैं। ह्ाथ-पैर-मँँह-माथा
सब पर धूल और कालिख लगी हे। पूरां मुँह
रुदन ओर प्रतारणा से फूल-सा आया है। चोखट पर
खड़ी खड़ी वह अपने आँचल से आँसू पोंछती रहती
है। क्षण भर बाद काका की दृष्टि दरवाजे की ओर
घूमती है ओर वह सहम जाते हैं, कुछ बोल नहीं
पाते |]
: (क्षण-भर बाद पीड़ा मिश्रित व्यंगसे) इसी लिए कच-
हरी से मुझे छुड़॒वाकर इस घर में लाये थे
[मिनकू चुप हैं, भगोती घास काटने में लगा है ||
: बड़े काका तो बने हो, अब जवाब दो न !! ****'** दो
जवाब, इजलास में, हाकिस के सामने तुम लोगों ने क््या-
क्या वादे किये थे ?
[सूका की आवाज सुनते ही भगोती क्रोध से
लाल हो जाता है | चारा काटना छोड़, वह दरवाजे
की ओर मकपटता है. मिनकू हाँ'“हाँ हाँ ' कहते
दुए भगोती को पकडढ़ते हैं |]
: (आवेश में) चुड़ेल, यहाँ क्यों आई ?
: (जैसे लड़ती हुई) हाँ, हाँ, ले मार ! ल्ले मार गेंढासा से !!
मार न !!
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