अंतिम इच्छा | ANTIM ICHCHA

ANTIM ICHCHA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaबदीउज्ज़माँ -BADIUZZAMA

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बदीउज्ज़माँ -BADIUZZAMA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 अम्मा और छोटी अम्मा में जैसे जन्म-जन्मान्तर की दुश्मनी थी।| बस चलता तो एक-दूसरी को कच्चा चबा जाती। अम्मा अब्बा के डर से बहुत कम बोल पाती थीं। अब्बा का गुस्सा ही कुछ ऐसा था कि किसीको कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। उनके आते ही घर में सब लोगों को जैसे सांप सूंघ जाता था। पर छोटी अम्मा पर छोटी अब्बा का कुछ जोर नहीं चलता था। अम्मा कहती थीं, जादू कर दीहिन है कमाल के नन्हियाल वाले सलीम पर। एक मजाल जो कुछ कहे सके बीवी से। अम्मा मन-ही-मन कमाल भाई से बहुत जलती थीं। एक बार जब कमाल भाई स्कूल के इम्तिहान में फेल हो गये थे और मैं पास हो गया था तो अम्मा ने कहा था, अल्लाह मियां घमंड तोड़ दीहिन ना। जो सबको गिरावे उनको अल्लाह गिरावे। और सच पूछिए तो मुझे बेहद खुशी हुई थी। अपने पास होने से ःज्यादा इसकी खुशी थी कि कमाल भाई फेल हो गये। मेरेर्‌ ईष्याभाव को इस घटना से बड़ी तृप्ति मिली थी। छोटी अम्मा के यहां उस रोज सब लोग बहुत उदास थे और कमाल भाई ने तो कई रोज तक अपनी शक्ल तक नहीं दिखाई थी। अब्बा को भी बहुत दु:ख हुआ था और मेरे पास होने पर उन्हें जितना खुश होना चाहिए था उतना खुश वह नहीं हुए थे। अम्मा ने यह सब देखकर चुपके से कहा था, खुश कैसे हों। लाडला भतीजा जो फेल हो गया है। इनका बस चले तो बेटे को भी फेल करा दें। अम्मा की ये बातें उस समय मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। कमाल भाई के व्यवहार और उनके लाड़-प्यार के कारण मैं अन्दर-ही-अन्दर सुलगता रहता था। अब्बा कमाल भाई को जितना चाहते हैं उतना मुझे नहीं चाहते। यह सोचकर मैंर्‌ ईष्या से पागल हो उठता था। ये पुरानी भूली-बिसरी बातें इस समय अनायास ही याद आ रही हैं। तब ये कितनी महत्त्वपूर्ण लगती थी! वक्‍त ने अब इन्हें कितना गैर-अहम बना दिया है! कितनी हैरत होती है अपने-आप पर कि बचपन में कितनी फिजूल की बातों को लेकर मैंर्‌ ईष्याभाव से पीड़ित रहता था। अब्बा का जब देहान्त हुआ था तो अम्मा के धीरज का बाँध जैसे एकाएक टूट गया था। छोटी अम्मा को देखते ही अम्मा ने कहा था, लो, अब तो कलेजा ठंडा हो गया ना तुमरा। और छोटी अम्मा को जैसे सांप सूंघ गया था। एक शब्द भी तो न निकला था उनके मुंह से। 411




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