आकाश दर्शन | AKASH DARSHAN

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गुणाकर मुले - Gunakar Mule

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मारतीय रधिषक्र : यह पित्र भ्री नमाला” के विवरण के आधार पर बना है; इसमें बाहरी बेरे में आरभ्-राधि गेष है और अंतिम राशि मीन: कीच के पेरे में रहु-केठु सहित 9 बह हैं कद में चारों विज्ञाओं के साथ द छुमेठ पर्वत को (दिखाया गर्म है. आधुनिक भारतीय पंचांगों में, और फलित-ज्योतिष में भी, आज सात वारों और बारह णशियों की धारणाओं का बड़ा महत्व है, मगर वास्तविकता यह है कि वैदिक साहित्य, वेदांग-ज्योतिष और महाभारत में स्रात वारों तथा बारह राशियों का कहीं कोई उल्लेख नहीं है | भारतीय ज्योतिष्ंष में सात वारों और बारह 30 / जाकाश दर्शन णशियों का समावेश बाद में, ईसवी सन्‌ की आरंभिक सदियों में हुआ । इसकी अधिक चर्चा हम आगे करेंगे | . फिलहाल महत्व का प्रश्न है--चंद्रमार्ग को 27 या 28 भागों (नक्षत्रों) में बांटने की पद्धति सर्वप्रथम किस देश में शुरू हुई ? द पिछले करीब दो सौ वर्षों से अनेक विद्वान इस समस्या के बारे में अपने मत प्रस्तुत करते आ रहे हैं | वजह यह है कि 28 चांद्र-नक्षत्रों का प्रचलन चीनी और अरी ज्योतिष में भी देखने को मिलता है । कुछ भिन्‍न रूप में नक्षत्र-विभाजन की यह पद्धति प्राचीन मेसोपोटामिया, मिश्र और ईयन में भी देखने को मिलती है । इसलिए कुछ विद्वानों का मत है कि चीन की चांद्र-नक्षत्र पद्धति अधिक प्राचीन है, तो कुछ विद्वानों का विचार है कि चांद्र-नक्षत्र पद्धति का मूल बेबीलोनी ज्योतिष में है | द चीनी और अरबी ज्योतिष में 28 नक्षत्रों का प्रचलन रहा है | अखी ज्योतिष चीनी तायकेन (247 ई). इसमें 1034 वार्यों क्री सही स्थितियों के अलावा आकाश्षयगा की सीमाएं भी स्पष्ट की गई हैं: नक्षत्र स्वदेशी : राशियां विदेशी / 31




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