सतगुरु तुलसी साहिब - Satguru Tulsi Sahib
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तुलसी साहिब 'साहिब पंथ' के प्रवर्तक थे। कहा जाता है कि ये मराठा सरदार रघुनाथ राव के ज्येष्ठ पुत्र और बाजीराव द्वितीय के बड़े भाई थे। इनका घर का नाम 'श्याम राव' था। किन्तु इतिहास इस अनुश्रुति का समर्थन नहीं करता। इतिहास ग्रंथों के अनुसार रघुनाथराव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम अमृतराव था। 'घटरामायन', 'शब्दावली', 'रत्नासागर' और 'पद्यसागर' (अपूर्ण) इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।
ऐसा प्रसिद्ध है कि 12 वर्ष की अवस्था में ही तुलसी साहिब घर से विरक्त होकर निकल पड़े थे और हाथरस, उत्तर प्रदेश में आकर रहने लगे थे। क्षिति बाबू के अनुसार पहले ये ' आवापंथ' में दीक्षित हुए थे और बाद को संतमत में आये; किंतु ऐसा मानने को कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।
तुलसी साहब ने हृदयस्थ 'कंज गुरु' या 'पद्मगुरु' को ही अपना पथ-निर्देशक माना है। इसे ही कहीं-कहीं इन्होंने 'मूल संत' भी कहा है। इस प्रकार ये किसी लोक-पुरुष को अपने गुरु रूप में स्वीकार नहीं करते।
संत तुलसी साहब से ही परमार्थ की रौशनी राधास्वामी के संस्थापक स्वामी शिवदयाल सिंह जी महाराज (राधा स्वामी) एवं परम संत बाबा देवी साहब को मिली।