मोटरखाना | Motorkhana

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Book Image : मोटरखाना - Motorkhana

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ करुणा शंकर दुबे - Dr Karuna Shankar Dubey

नाम - डॉ0 करुणा शंकर दुबे
वर्तमान पद - सहायक निदेशक,आकाशवाणी,भारतीय प्रसारण सेवा (कार्यक्रम)एवं केन्द्राध्यक्ष आकाशवाणी ,अल्मोड़ा।
पिता का नाम - स्व0 पं0 कीर्ति शंकर दुबे
माता का नाम - स्व0 शशि प्रभा दुबे
पत्नी–श्रीमती गीता दुबे
जन्म
|
- 14 जून 1958
शिक्षा
- प्रारम्भिक शिक्षा -नगर पालिका प्राथमिक विद्यालय, पक्की
बाजार(अर्दली बाजार) वाराणसी ।
उच्च शिक्षा –काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
- एम0 ए0 संस्कृत कला संकाय (काoहि0वि0वि0) - पी0 एच0 डी0, कला संकाय (काOहि0वि0वि0) - आचार्य पालि ,सम्पूर्णानन्दन संस्कृत विश्वविद्यालयऔर बौद्ध शब्द कोष का अध्ययन कार्य हेतु।
भूमण्डल(वाराणसी) - पाक्षिक हिन्दी के

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामसेवक बंगले की रजिस्ट्री करवा करके दो बजे दिन में ही लौट आया था। उसने । पहले मोटरखाना का दरवाजा खोला और फिर गैस सिलिंडर के पास जाकर चावल-दाल आदि के डिब्बों को बाहर निकाला । रजिस्ट्रार आफिस से आते समय चौराहे पर बेकार बैठे। चार मजदूरों को भी साथ में लिया था। बगल के साइकिल की दुकान से एक हथौड़ा लाया। रामसेवक दो दिन पहले बहन के हाथ का ही अन्न खाया था। इस बीच वह केवल चाय ही पीता रहा हैं पर उसमें एक बीस बरस के युवक के समान तेजी थी। मजदूरों को लेकर वह बंगले के मुख्य दरवाजे पर गया। हथौड़े को ऊपर करके ऐसा मारा कि ताला सहित कुण्डा दूर कर दूर जा गिरा। इतनी तेज आवाज हुई कि पड़ोस के बंगले की मालकिन व उनका कुत्ता एक ही साथ चिल्ला पड़े। वह झटाक से अपना गेट खोल कर बाहर आ गई। रामसेवक को देखीं तो अन्दर चली गईं। रामसेवक उनकी तरफ देखा ही नहीं। मजदूर हतप्रभ ! उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। एक ने ताला सहित कुण्ड़े को उठाया। रामसेवक ने उससे कहा, इसे एक तरफ कहीं रख दो। बाकी की चिन्ता छोड़ो। तुम सब मेरे साथ अन्दर आ जाओं और काम समझ लो। अन्दर ले जा कर मजदूरों को कमरों में रखे सामानों को दिखाया। उनसे कहा कि ये सभी सामान सावधानी व सलीके से मोटरखाना में रखना है। कोई टूट फूट नहीं होनी चाहिये। बताओ! कितने पैसे लोगे ? तुम लोगों पर कोई दबाव नहीं है। एक मजदूर देखिये बाबूजी! सामान तो बहुत अधिक है और कुछ तो वजनी भी हैं। सबको ठीक से रखना भी है। ऐसे वैसे रखना होता तो कोई बात नहीं। हम तो काम करने आये ही हैं, चार आदमी हैं, आप समझ कर जो भी अपनी खुशी से दे देंगे हम ले लेंगे। दिन तो बीत ही गया है। काम के लिहाज से अगर पूरे दिन की दीहाड़ी मिल जाती तो हमारे भी बाल बच्चे अपना पेट भर लेते।




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