बाल्मीकि मुनि का जीवनचरित्र | Balmiki Muni Ka Jivanacharitra
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.19 MB
कुल पष्ठ :
187
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाद्मकि का जीवन-वृत्तान्त (२१) कक # भा शा अपने सम्प्रदायों का उसी तरह प्रचार किया जिस तरह हमारे देश में भिन्न २ दूधनों के रचने वालों ने अपने २ मत निकाले | मत का चांथा बड़ा रूप सदाचार हें जिसको बोधघ- धर्म के चलाने वालों ने सबसे ऊंची पदबी दी है। महात्मा बुद्ध अपनी शिक्षा भ इश्वर तथा बेद की ओर ध्यान हा नहीं दूत । उनका सारा बल इसा बात पर ठग जाता ६ कक हम अपन कम्मा का अच्छा कर । कमा की शुद्धताइ ही हमकां दुख से बचाकर निवांण दिखा सकती हे । बौद्ध घर्म सदाचार का दही धम दे । मत का पांचवा रूप वह सावजनिक-नियम हैं जो सब संसारको एक सत्र में सम्बद्ध रखता हे । इसके नीचे चढठते हुए मनुष्य के ।ठए अपने श जात तथा ऊछुठ के प्रति भिन्न २ कच्तेव्य हैं । इन कचेव्यों का पालन करना ही उस बड़े नियम का. पालन करना है । हमारे ऋषि बतलाते हैं कि उस धरम अधथांत् कत्तेव्य को पाठन करने से अधे की प्राप्ति होती है । उस अथे को प्राप्त करके हम अपनी कामनाओं को पूरा कर सकते हैं ओर जब इन कामनाओं में हमारा भाग निष्काम होजाता हे तब हमको मोक्ष की प्राप्ति होजाती है । इस निष्काम कम को पुराने आय्य ठोगों ने यज्ञ का नाम दिया था । ७७ रा ता ७ भाभा आशा ा९/ ० ७. चयन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...