वाल्मीकि मुनि का जीवन चरित्र | Valmeeki Muni Ka Jivan Charitra

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Valmeeki Muni Ka Jivan Charitra by भाई परमानन्द - Bhai Paramanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाब्मीकि का जींवन-चुत्तान्त (१३) और जैसी योग्यता उसमे आजाती थौ उसके अनुसार उसे राह्मण, शतरि, वैश्य ओर शुद्र वभ में रख दिया जाता था | वज्ची उपनिषद मे कहा है किं बाह्मण यह है.जिसने परत्रह्म का अनुभव कर लिया है, जिसका मन और चुद्धि ईपी, दवेप, आशा, श्रम, मद और पाखण्ड से मुक्त हो खुका है । चेद, शाख, पुराण और इतिहास ऐसे व्यक्ति को दी व्राह्मण ब्रतलाते हैं । भीता में कहा है कि शोय तेज, धृति, दान ओर युद्ध में प्रवीणता क्षत्रिय के खाभा- बिक कर्म हैं । सहा निवोण तंत्र में लिखा है कि वैद्य का कर्तव्य पि, वाणिज्य और उन सबे साधनों को काम में छाना है जिनसे मजुष्य समाज का पारुन पोपण हो सके। शुद्र का काम सेवा है । उसे सत्यवक्ता होना चाहिये । अपने इन्द्रिय और सन को अपने वश मे रखना चाहिये ओर कभी आर्मी न होना चाहिये । _ समाज की तुठना मनुष्य के शरीर के साथ की जा सकती है । जिसमें घ्राह्मण मस्तिष्क का काम करता था । उसे खाने पीने का कुक लालच न था । वह दारिद्र्यत्रती होता था । उसकी प्र्डत्ति घन कमाने की ओर न दोती थी, ताकि वह अपने चिस ओर बुद्धि को वेद शास्त्र के ज्ञान का कोश बना सके और उस ज्ञान के दीपक से समाज का नेवृत्व सन कर सरके । क्षत्रिय अपने बढ




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