बाल्मीकि मुनि का जीवनचरित्र | Balmiki Muni Ka Jivanacharitra

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Balmiki Muni Ka Jivanacharitra by भाई परमानन्द - Bhai Paramanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाद्मकि का जीवन-वृत्तान्त (२१) कक # भा शा अपने सम्प्रदायों का उसी तरह प्रचार किया जिस तरह हमारे देश में भिन्न २ दूधनों के रचने वालों ने अपने २ मत निकाले | मत का चांथा बड़ा रूप सदाचार हें जिसको बोधघ- धर्म के चलाने वालों ने सबसे ऊंची पदबी दी है। महात्मा बुद्ध अपनी शिक्षा भ इश्वर तथा बेद की ओर ध्यान हा नहीं दूत । उनका सारा बल इसा बात पर ठग जाता ६ कक हम अपन कम्मा का अच्छा कर । कमा की शुद्धताइ ही हमकां दुख से बचाकर निवांण दिखा सकती हे । बौद्ध घर्म सदाचार का दही धम दे । मत का पांचवा रूप वह सावजनिक-नियम हैं जो सब संसारको एक सत्र में सम्बद्ध रखता हे । इसके नीचे चढठते हुए मनुष्य के ।ठए अपने श जात तथा ऊछुठ के प्रति भिन्न २ कच्तेव्य हैं । इन कचेव्यों का पालन करना ही उस बड़े नियम का. पालन करना है । हमारे ऋषि बतलाते हैं कि उस धरम अधथांत्‌ कत्तेव्य को पाठन करने से अधे की प्राप्ति होती है । उस अथे को प्राप्त करके हम अपनी कामनाओं को पूरा कर सकते हैं ओर जब इन कामनाओं में हमारा भाग निष्काम होजाता हे तब हमको मोक्ष की प्राप्ति होजाती है । इस निष्काम कम को पुराने आय्य ठोगों ने यज्ञ का नाम दिया था । ७७ रा ता ७ भाभा आशा ा९/ ० ७. चयन




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