अच्छी हिंदी | Acchi Hindi

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Acchi Hindi by डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अच्छी भाषा के गुण अच्छी हिन्दी पर विचार करने के पूर्व भूमिकास्वरूप यह प्रश्न उठाना अप्रासगिक न होगा कि अच्छी भाषा के लिए कौन-कौन से गुण अपेक्षित है। यो तो इस सवध मे काफी मतभेद की गुजाइश है, किंतु मेरे विचार में अच्छी भाषा की मुख्य अपेक्षाएँ तीन हैं. शुद्धता, सुवोधता, प्रभाविता । यहाँ इन तीनों पर अलग-अलग विचार किया जा रहा है । भाषा की शुद्धता अच्छी भाषा के लिए सबसे आवश्यक है उसका शुद्ध होना । भाषा की शुद्धता का अर्थ यह है कि उसमे, उस भाषा के मानक रूप का किसी भी स्तर पर उल्लघन न हो । उसमे निम्नाकित वाते मुख्य रूप से आती हैं (1) शुद्ध उच्चारण--इसका सवध वोलने की भापा से है । इसके अतर्गंत (क) (ख कि मुख्यत इन वातो का ध्यान रखना चाहिए स्वर-व्यजन का ठीक उच्चारण--भापा स्वर और व्यजनों से वनी होती है। उच्चारण के स्तर पर सबसे अधिक महत्व उनका ही होता है । इसमे मूल स्वर, सयुक्त स्वर, मूल व्यजन, सयुक्‍्त व्यजन इन चार का उच्चारण आता है । हिर्दी से उदाहरण लेना चाहे तो “वस्तु का “वस्तू' या भक्ति का 'भकती' मूल स्वर विपयक अशुद्धि है तो घास “ का 'घास' या “जौ' का *जौ' मौखिक स्वर को अनुनासिक कर देने की अधुद्धि है । ऐसे ही 'शहर' का 'सहर', या “विद्यार्थी का “विद्यार्थी! मूल व्यजन की अशुद्धि है और “रक्षा का “रच्छा' सयुक्त व्यजन की अशुद्धि है । ध्रनुतान श्रौर चलाघात का ठीक प्रयोग--वोलने मे तरह-तरह के वाक्या का लहजा या अनुतान अलग-अलग होता है “राम गया !” “राम गया ?' “राम गया ' के वोलने के उतार-चटाव का ही अतर है 1 इसे अनुतान कहते हैं। वोलने मे सुर के इस उत्तार-चटाव क्य




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