अकबर की मृत्यु के समय का भारत | Akbar Ki Mrityu Ke Samay Ka Bharat

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Book Image : अकबर की मृत्यु के समय का भारत  - Akbar Ki Mrityu Ke Samay Ka Bharat

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डब्ल्यू. एच. मोरलेंड - W.H. Moreland

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सुधाकिरण सिनहा - Sudha Kiran Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 गकबर की मृत्यु के समय का भारत यूरोपीय यात्री जब पूर्वी देशों के बारे में कहते हैं कि श्रमुक स्थान की श्रावादी घनी है या अमुक की विरल है तब उनका श्राशय क्या होता है । उनकी बातों का मतलव यह नहीं होता कि भारत की श्राबादी श्राज के यूरोप के मापदंड से देखने पर श्धिक या कस थी बल्कि यह होता है कि उस समय के यूरोप की तुलना में कम या ज्यादा थी जब उसकी-झ्ावादी आज की भ्रपेक्षा आधी से तो निश्चय ही वहुत कम थी । इस मापदंड से देखें तो इसमें कोई संदेह नहीं कि कम से कम दो सदियों तक विजयनगर क्षेत्र की श्रावादी बहुत घनी थी । सन 1400 के शीघ्र बाद लिखते हुए कोन्टी कहता है लोगों की संख्या इतनी भ्रधिक है कि विश्वास नहीं होता । लगभग उसी काल में फारस के विजयनगर स्थित राजदूत श्रव्दुरंज्ञाक ने लिखा कि साम्राज्य की श्रावादी इतनी श्रधिक है कि उसका झ्रंदाजा लगा पाना श्रसंभव है । उसके एक सदी वाद पाइस ने लिखा कि नगरों कस्वों श्रौर गांवों से भरा यह पूरा देश बहुत ही घना ग्रावाद है । 1540 में अकाल पड़ा जिसकी विभीपिका कोरोमंडल तट पर सबसे प्रबल रूप से प्रकट हुई । उस श्रकाल के वाद जनसंख्या में अस्थाई तौर पर कुछ कमी श्रवश्य आई होगी लेकिन श्रगले साठ वर्षों तक मुझे ऐसी किसी श्र विपत्ति का कोई प्रमाण नहीं मिला है श्रौर 1597 के श्रासपास जेसुइट मिशनरियों के कथनों से प्रकट होता है कि जो वर्णन पाइस ने किया वह तब भी लागू होता था । मन्नार के मोत्ती मछलीगाहू में लगभग 60 000 की भीड़ का उल्लेख मिलता है भर पिमेंटा श्र साइमन सा के विवरण से प्रकट होता है कि वह अनेक शहरों वाला श्र सब जगह श्रावादी से भरा पूरा देश था । जहां तक पश्चिमी घाटों के नीचे के तंग भूभाग का संबंध है यह मानन। पड़ेगा कि वहां की श्रावादी भी बहुत घनी थी क्योंकि डिकाडास में जिन तथ्यों का उल्लेख है उनसे यही निष्कर्ष निकलता है श्रौर यूरोपीय लेखकों में से बारवोसा इसकी पुष्टि करता है । दकन के राज्यों के संबंध में इस काल से सीधा संबंध रखने वाले बहुत कम तथ्य उपलब्ध हैं । पंद्रहवीं सदी के रूसी भिक्षु निकितिन ने छोटे-छोटे शहरों की संख्या के वारे में लिखा है श्रौर कहा है (बचें कि अनूवाद सही माना जाए) कि देश लोगों से उसाठ्स भरा हुभ्रा है । सोलहवीं सदी के दौरान ये राज्य विजयनगर के खिलाफ जम कर लोहा लेते रहे श्रौर भ्रंत में इसमें इन्हें सफलता भी मिली । इन लड़ाइयों के लिए अपनी सेनाओं में इन्हें बहुत से सिपाहियों को भरती करना पड़ता होगा जो तभी संभव था जब हम यह मान लें कि इनकी आबादी वहुत वड़ी रही होगी । अकबर की मृत्यु के श्राधी सदी वाद फ्रांसीसी यात्री थेवनों ने श्रौरंगावाद से गोलकुंडा तक घनी झावादी देखी लेकिन गोलकुंडा से पुर्व मछलीपट्रम तक श्रावादी काफी विरल थी । टैवर्नियर की दकन यात्नाओओों के वृतांतों से श्रावादी के घनेपन का श्राभास मिलता है श्रौर हीरे की खानों के क्षेत्रों में भीड़ का उसने जो वर्णन किया है उससे प्रकट होता है कि देश के इस हिस्से में मजदूरों की कंमी नहीं थी । जहां तक मुगल साझ्राज्य का संबंध है कुछ मार्गों पर थात्ला करने वाले लोगों ने असंगवश जो वातें कही हैं उनमें से अनेक श्रापस में मेल खाती हैं । सुरत से श्रागरा तक की यात्रा के वृतांत को देखें तो पाते हैं कि गुजरात घनी भ्रावादी वाला क्षेत्र था । सुरत के विपय में लिखते हुए डेला वेल कहता हैं भारत के हर क्षेत्र के भली भांति आवाद नगरों और स्थानों की तरह इसकी श्रावादी भी बहुत श्रघिक है । इसके लेखक




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