भारत के स्त्री-रत्न | Bharat Ke Stree Ratna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ दक्षकन्या सती विरंगे छोटे-छोटे पत्थर इकट्ठे करके घर आती । ` माता उन्हें देख कर हँसती और कहती--अपने घर में अनेक मणि-मुक्तादि रत्न भरे पढ़े हैं; उन्हें छोड़, इन पत्थरों को तुम क्यों इकट्ठे करती हो ९? राजकुमारियाँ कुछ जवाब तो न देतीं; पर मणि-सुक्ताओं की उपेक्षा करके, इन पत्थरों से ही अपने खेल के घर सजातीं । शने: शनेः राजकुमारियाँ वड़ी हुईं। तव खब समारोह के साथ प्रजापति दन्त मे उनके विवाह कर दिये । मनचाहे समधी और जँवाइयों के मिलने से राजा-रानी के आनन्द का वारापार न रहा । विवाह फ वाद, एक-एक करके, राजकुमारियाँ अपनी अपनी सुसराल गई और आनन्दूपूवेक अपने धर-बार सम्हालने में लग गई । परन्तु दत्त की एक कन्या अभी भी वारी थी । इसका नाम था सती । सती सब कन्‍्याओं से छोटी होने के कारण, माता-- पिता का इस पर सव से अधिक सेह था । राजा-रानी की इच्छा यह थी कि सती जब सयानी हो जायगी तब दूसरी सब कन्याओं से ज्यादा ठाटबाट से और भी अच्छे वर के साथ उसका विवाह करेंगे । सती के रूप-गुणं की तो वात ही क्या कही जाय ? बैसे तो राजा दन्त की सभी कन्यार्ठे अनुपम सुन्द्रियाँ थीं; परन्तु सती के साथ तो उन किसी का युक्राबिला नहीं हो सकता था। सती का सोन्द्ये उसके शरीर के वरणं अथवा उसके नेत्र या कानों की बना- वट मँ न था! उसका सौन्द्यं तो था उसके भावमे, उसके शरीर की दिव्य ज्योति में जिस किसी की भी उस पर नज़र पड़े जाती, 'शकंटक उसे देखता ही रह जाता । साधु-सन्यासियों को तो उसे,




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