अलंकार दर्पण | Alankar Darpan

Alankar Darpan by महाराजराम सिंह जी - Maharajram Singh Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९४ ) दोचा। हरी खिलत है सभी दिसि सुवतिन सौं लोर ! मानी वौर अवीर अति फैलि रह्मों चहुंओर॥८८॥ सोरठा। जब अहेत में कोइ, करें रेत संभावना । विषय सिद्दि जहूँ होड़, ताहिं सिर विषया कहैं॥ दोछ्ा | छल कछवीले रावरे अधिक रसौखें नेन । सानी मदसाते भय तातें राते पेन... ॥ ८१ ४ सोरठा | दनकारन में हो, कारन कौ संभावना. । विषय सिदड नहि लोड, हत असिध विषया वहै॥ दीचा ! शीफ़ल तिरि कुचन की समता राखत बौर. । समतासी नाते मनी उन्हें विद्वारत कौर ॥८३॥ सोरठा । जहां अफल फल होड़, विषय सिध बरनन करें । फल उत्पे्ा सोड़, सिर विषया ताकों कहें ॥




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