मनोविज्ञान और शिक्षा - शास्त्र | Manovigyan Aur Shiksha Sastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध् मनाविज्ञान श्रौर शिक्षा-शास्त् जाती हैं | प्रवाह नदी की तरह लगातार चलता रहता है | हाँ यह श्रवश्य है कि एक वृत्ति एक समय ध्यान के सामने रहती है ्रौर चेतना-प्वाह का श्रन्य सब मग कहीं गुम रहता है | थोड़ी देर में दत्ति शुम स्थान से ध्यान में आ जाती है और ध्यानवःली इत्ति खिसककर शुभ स्थान में चली जाती है । जेम्स ने चेतना प्रवाह के विपय में कुछ नियम नियुक्त किये हैं । वतमान काल में वे सब माने बते हैं या नहीं इस वात के समझाने की यहाँ आवश्यकता नहीं है । यहाँ कुछ का वर्णन करना पर्यात होगा । एक लक्षण तो यह है कि चेतना की इत्ति जा कुछ होगी वह किसी न किसी व्यक्ति की श्रवश्य होगी | ऐसा सम्भव है कि चूत्तियाँ सन से बाहर इधर-उघर मारी मारी फिरें | दूसरी वात यह है कि सब प्राणियों की मनादत्तियाँ एक नहीं होती हैं | आपको मनेावत्तियाँ आपके मन में हैं-मेरी मेरे मन में । यह हो सकता है कि एक उत्तेजना होने के कारण मने.द्वत्तियां में कुछ समानता हो परन्ठ वे पूर्ण रूप में एक-सी नहीं हो सकतीं | हमारे व्यवहार का रूप मुख्य रीति से हमारी चेतना ही पर निर्भर है | हम उन्हीं मनादत्तियों का रूप व्यवहार में देखते हैं जो चेतना-परवाह में झ्ाती हैं | प्राचीन काल में यही समझा जाता था कि मनुष्य का व्यवहार केवल इस चेतना ही पर निर्भर हैं परन्तू व्यवहार का पूर्ण विश्लेपण करने से श्र ऐसा विदित होता है कि कुछ श्रचेतित बत्तियाँ भी जिनकी चेतना हमें बिलकुल नहीं झेती हमारे व्यवहार पर प्रभाव डालती हैं । फ्राएड (सपप८त) श्र यूंग (ुए्०8) ने स्वपत छाया इत्यादि का विश्लेषण किया है ओर उन्होंने अचेतित चृत्तियों के प्रभाव के बड़ा महत्त्व दिया है | इस मामले पर विज्ञानवेत्ताओं में अभी बहुत कुछ मतमेद भी है | (रे) तीसरी बात जो जानने योग्य है वह हैं संस्थान का संक्तिम हाल | हमारे शरीर में कई संस्थान श्रथवा मंडल हैं जा कि मशीन के भिन्न भिन्न अंगों के समान हमारे शरीर की ब्रद्धि के लिए एथक् प्रथक् काम करते हैं । वत-सेस्थान वह संस्थान है जा कि हमारे प्रतिक्रियात्मक तथा ऐच्छिक वा कृतपूर्व कार्यों के विधिवत् वलाता है | इसके तीन मुख्य विभाग हैं--(१) बात-नाड़ियाँ (रटाफ्८ 5) (२) सुबुग्ना (5091 ८०१) (३9 मस्तिष्क (छा2ं0) | वात-नाड़ियँ मस्तिष्क तथा सुषुम्ना से शरीर के दूर-दूर के भार्गों के जाती हैं | वे पतले लम्वे रेशे श्रयवा तारों के समान होती हैं | बड़ी बड़ी नाड़ियों में बहुत रेशों का एक बंडल होता है | हर नाड़ी के भीतर एक तार होता है जिसे एक्सन (090) चइते हैं| यह नाड़ी की पूरी लम्बाई में होता है । नाड़ियाँ शरीर में तार मेजने
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