मनोविज्ञान और शिक्षा | Manovigyan Aur Shiksha

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Manovigyan Aur Shiksha by जीवनायकम - Jivanaykam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोविज्ञान (জ)ও थाद करनेमें कविताको कितनी बार दोहराया गया है, तद याद करनेकी प्रणालीका | पता लग सकता हूँ। यह सफतताऊ़े प्रयोग हैं সীং হলদ লক্ষী শাথ हो संकतो হু! मानिक छियाप्रोंके शारीरिक सहकारोको दूढनेको विधियों पर प्रपोग होता है तद याभ्नोक्रा निरोक्षण होता है। जेंसे बिल्लोके क्रोषका प्रभ/व उसके पांचनको शारीरिक प्रा पर कया होता है, इसका एक्सरेके द्वारा पता लगाया जा सकता है। प्रत: प्रत्येक गसिक परोक्षा भानसिक्र घटताप्रोके निरीक्षणको एक विपय-सम्बन्धी विधि है। इस धर्में भी शाता-सम्बन्धी विधिके दोष है। घट्रेंड रसेल का कहृदा है कि जिस पशुप्रोंका शीक्षण हुमा है, सबने “निरीक्षकोंकी राष्ट्रीय विशेषताप्रोंको प्रदर्शित किया हैँ रिकनों द्वारा निरोक्षित पशु शोर-गुलके साथ पागलकी तरह भागते भौर देवयोगसे छत फल पा जते है। जर्मनोके द्वारा निरीक्षित पशु शान्त बैठते भौर सोचते है तथा বম সবনী भान्वरिक चेतनाके द्वारा समस्याका हल निकाल लेते है ॥ चेतना हम साधारणतया यह कह सकते हे कि मनो विज्ञानके प्रध्ययमका विषय चेतना है। रे प्रन्दर सदा चेतनाका एक ख्रोत-सा बहता रहता है। इसका प्रारस्भ गर्भमें प्रौर त क़ब्रमें होता है। यह स्रोत इसलिए भी ह कि हम मस्तिष्को एक क्रियारो तरह ते हैं, वस्तुको तरह नहीं। यह सदा परिवर्त नशील तथा गतिशोल है। इसका कोई नद्वी। जब हम सोचना दर्द कर देते हे तो यह केवल भपना मार्ग बदल देता हूँ । ल-लोतकी भांति यह स्रोत भी उद्गमसे দন্ত तक टूट है। वदि हम किसी क्षण भी घपने में देखें तो हम इसका एक ही प्रंश देख पाते हे, तुरन्त यह बइल जाता है मौर दके गान पर दूसरा भा जाता है। इस प्र कार यह हटता भौर बदलता रहता है। पिछले क्षण | विचार जाकर फिर लोदता नहीं। इस स्लोतको सतह बिकनी नहीं, वरन्‌ ऊंचीननी ची 1 इसीलिए हम चेतनाकी लह॒रोकी वात करते हे। हमारे मध्तिष्कर्में भग्य वस्तुप्रोकी বা হুক वस्तु सद। भ्रधिक प्रधान रहतो है। पपने जोवनक्े किसी क्षणमें हम भ्रपने नमें फांफकर देखें। उदाहरणके लिए, हम किसी दुकात पर दाकू खरोदने गए है। पहले | सारी दुक।त हारो चेवनामें रहतो है, परन्तु जब हमें चाकू मिच जाता है, तो मस्तिष्क 1 कैवल इसकी चेतना रहतो हूँ ोर दुकातको हम भूल-सा जाते हूँ। फिर यदि किसी ताम पर दृष्टि पड़ गई तो पहचेका सब्र भूल जाता हूँ। प्रतः चेतनाकौ उप दवे जुदा को আানী ই [পর্ন ৯ সীং লত हूँ। मे दोनों व्रायः बदलते रहते हे, जैसे




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