दयानद ग्रन्थमाला शब्दाब्ली संस्करण भाग 1 | Dayanand Granthmala Shatabdi Sanskaran Bhag - 1

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Dayanand Granthmala Shatabdi Sanskaran Bhag - 1  by श्री स्वामी दयानन्द - Sri Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर २१ फ से परमेश्वर के प्रहण में प्रकरण और विशेषशण नियम कारण हैं । इससे सिद्ध हुआ कि जहां २ स्तुति, प्रार्थना, उपासना, सर्वक्ञ, व्यापक, शुद्ध, सनातन और सारिकर्ता 'मादि विशेषण लिखे हैं वद्दीं २ इन नामों से परमेश्वर का ग्रहण हाता है और जहां २ ऐसे प्रकरण हैं कि***** ऐसे प्रमाणों में विराट , पुरुप, देव, 'झाकाश, चाथु, आम, जल, भूमि 'आदि नाम लौकिक पदार्थों के हैं । क्योकि जहां २ उत्पत्ति, स्थिदि, प्रलय, अल्पज्ञ, जड़, दृश्य 'ञादि विशेषण भी लिखे हों वहां २ परमेश्वर का अ्रहण नहीं होता । वह उत्पासि आदि व्यवद्दारों से प्रथकू है ओर उपरोक्त मन्त्रों में उत्पत्ति छादि व्यवद्दार हैं । इसी से यहां वि- राटू 'आदि नामों से परमात्मा का अरहण न हो के संसारी पदार्यों का अहण होता है। किन्तु जहां २ सर्वेज् आदि विशेषणु हों वहां २ परमात्मा श्औौर जहां २ इच्छा, देप, प्रयत्न, सुख, दुश्ख 'ौर श्यल्पज्ञादि विशेषण हों वहां २ जीव का अददण होता है, ऐसा सर्वत्र समझना चाहिये, क्योंकि परमेश्वर का जन्म मरणु कमी नहीं होता, इस से विराट आदि नाम ओर जन्मादि विशेषणों से जगत्‌ के जड़ और जावादि पदार्थों का प्रहण करना उचित हे परमेश्वर का नहीं । ( ४ ) स्वामीजी के भाप्य में जो भर विशेषता दीखती है वह उनके विशेष परिज्ञान तथा योगशक्ति के कारण से है । इसका थाभिपाय यह है कि सामान्यमतुष्य स्वामीजी की भाप्यरीली को लेकर भी ऋषि के अवशिष्ट भाप्य को ऋषि-भाष्य के सद्श गम्भीर तथा निर्दोप नहीं वना सकता, क्योंकि साधारण मनुष्य में उतनी प्रतिभा, ज्ञान, 'झजुभव, विस्तृत स्वाष्याय तथा योगशाक्ति का होना असम्भव है । __.._ जमेगिए हरविलास सारडा पाप झप्णा ६ स० १८८१




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