प्राकृत भाषा | Prakrit Bhasha

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Prakrit Bhasha by प्रबोध बेचरदास पंडित - Prabodh Bechardas Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हर ऋग्वेद एक व्यक्ति या एक काल का साइहित्य नदी । जब आयें झजाएं भारत से झाई तब उनके पास जो परपरागत मान्यताएं थी देव- सष्टि की जो कल्पनाएं थी और यज्ञयाग की जो पद्धतियोँं थी बह सब उनकी भाषा की तरह आये ईरानी काल की देन थी । ये ईरानी निवासस्थान से भारत के उत्तरपश्चिम प्रदेशों मे आार्यो का छागमन क्रमश. आगे बढ़ती प्रजा का सूचक है । वेद मे ऐसे स्पष्ट उल्लेख नही है जहाँ पता चले कि आयंग्रजा अपना पुराना निवासस्थान छोडकर छागे बढ़ रही है । इससे सूचित होता है कि भारत मे आयोँ का भगीरथ काये था यहाँ उनके पहले जो प्रजाएं स्थिर हो चुकी थी उनको हटाकर अपना झाधिपत्य जसाना । इस काल मे होती है वेद की रचना । यह आय प्रजा-- इन्डोयुरोपियन वोलती प्रजा-- अपने अनेक परिश्रमणों में जहाँ गई है वहाँ विजयी होती है । उनके विजय की कुजी दो चीज मे रही है । एक है उनकी समाज- व्यवस्था दूसरी उनकी प्रगतिशीलता । उनकी ससाज व्यवस्था के दो महत्त्व के अग थे देवताओं को प्राथना करने वाले उनको यज्ञ से संतुष्ट करने वाले पूजारी झोर दुश्मनों से लड़ने वाले वीर योद्धा छोटे-छोटे नपति बोर नेतागणु । उनकी प्रगतिशीलता है हमेशा नये वातावरण के अनुकूल होना नये-नये तत्त्वो को अपनी सस्कृति मे अपनाना । इस शक्ति का एके उदाहरण मोहेजोदड़ो के अवशेषों को देखने पर सिलता है । इस नगर का आयुष्य करीब एक हजार साल का था किन्तु उस काल मे उनका व्यवहार रहन सहन की पद्धति घर बॉधना व्यवसाय करना वेशभूषा आदि से इतने दीघ काल तक कुछ फकें नहीं होने पाया था । उस प्रजा मे गतिशीलता का अभाव था । और यह आर्य प्रजा ? ये हमेशा बदलते रहे है यह आये प्रजा जो घूसती- फिरती पशु पालक प्रजा थी जिसको घर बॉधघने का नगर बसाने का कुछ भी ज्ञान न था जो शिल्प स्थापत्य से अनमिज्ञ थी वह भारत मे आने के पश्चात्‌ कुछ ही काल से अन्य प्रजाओ से सोखकर बड़े बड़े गणराज्य स्थापित करती है नगर बसाती है अनेक अआर्येतर प्रजाओं से मिलकर अपनी संस्कृति को सम्रद्व बनाती है । आर्यो की समाजव्यवस्था का प्रभाव उनके साहित्य के निमाण कप कप कप शा पर पड़ा । देवताओं को तुष्ट करने के लिए यज्ञप्रथा कम से कम छाय॑




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