नारायण भट्ट | Narayan Bhatt

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Narayan Bhatt by बालशौरि रेड्डी - Balshori Reddy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 राज नौका के आगे मार्ग दर्शन करते एक छोटी नाव चल रही थी उसके मुख द्वार के सामने एक नर्तकी राजा के अभिमुसी हो मड़ाभारत की कुमार अस्त्र विद्या-प्रदर्बन घटना अभिनय कर रही थी । निया राज-नौका के निर्णीत प्रदेश पर पहुँचने ही राजराज नौंका से बाहर आये । नर्तकी ने अपना नृत्य समाप्त कर कर्पर की आरती उतारी अन्य कन्याओ के साथ मिल कर सगल गीत याये । इसके उपरान्त पुन तीन बार आरती उतार कर आँखों से लगाया तब वह पाण्वे में जा खड़ी ठई राजराज के आगमन के साथ सभी नागरिक उठ खडे हुये । वदीन जन ने विरूदावलियाँ गाकर स्तुति की । मागध ने चालक्यकी सरेकों के इतिहास का गान किया श्री घाम्न पुरुषोत्तमस्य महतो नारायणस्य प्रभो नाभी पकरुह्ा दुवभूव जगत स्त्रष्टा स्वयभूस्तत जज्ञे मानससूनु रत्रि रिति यस्त स्मान्मुने रत्रित सोमो वशकर स्सुधादु दित श्रीकठ चूडामणि त्ठ राजराज गज गमन के साथ सिंहासन के निकट पहुँचा । सर्वप्रथम उन्होंने राजगुरु नन्नय भट्टारक को प्रणाम किया । इसके उपरान्त विद्वान और कवि चीदमारयें पपन भट्टाचाये भींमन भट्ट चेट्रन भट्ट मुद्रन भट्ट मल्लना को वुद्ध अमात्य वज्जिय प्रेग्गडा तथा नृपकामदण्ड को विनयपुरवेक समस्कार किये । तदनतर सिंहपीठ का स्पशं करके उसे प्रणाम किया । तब सबकी अनुमति के साथ सिह्दासन पर विराजमान हुये । सभापति नन्नय भट्टारक की आज्ञा लेकर राजपुरोहित ने श्री महा गणाधिपति की पुजा की । पुरोहित ने प्रणवपुर्वक स्पष्ट स्वर में निम्न झलोक का उच्चारण किया--




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