स्वाधीनता और विभाजन भारत में औपनिवेशिक सत्ता का पतन | Swadhinta Aur Vibhajan Bharat Me Aupnibashik Stta Ka Patan
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.62 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14 स्वाधीनता और विभाजन लिए पश्चात्ताप किया । दृष्टिकोणों की यह भिन्नता महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के दिनों में जब रेडिकल समूहों ने सांप्रदायिक ताकतों को भगवा पलटन अथवा फासिस्ट गून्स कहा तो उनको सहानुभूति का लाभ मिला है। एक स्तर पर इस पुस्तक में सांप्रदायिकता के विरुद्ध धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के संघर्ष का अन्वेषण किया गया है जो आज बहुत गंभीर राजनीतिक प्रश्न है । सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के बीच आज के विवाद में 1940 के दशक को लेकर मेरी बहस धर्मनिरपेक्ष ताकतों की ओर से एक हस्तक्षेप है । भारतीय राष्ट्र आज भी बनने की प्रक्रिया में है । स्वतंत्र शासन की स्थापना की दिक्कतों के पहले साल में धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने सांप्रदायिक चुनौती को जिस तरह अशक्त बना दिया था वह मौजूदा सांप्रदायिक अभियान से निबटने के लिए बहुत प्रासंगिक है । आज यह और भी अधिक जरूरी हो गया है। इसलिए कि उत्तरआधुनिकता के दौर में बुद्धिजीवी जगत में विचारधारा से पीछा छुड़ाना और अराजनीतिक बनना फैशन बनता जा रहा है । भारतीय जनमानस द्वारा संजोए गए और उन्हीं के द्वारा समर्थित आदर्शों मूल्यों सिद्धांतों और खासतौर से राष्ट्रवाद धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद का आंतरिक महत्व समाप्त किया जा रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि औपनिवेशिक मालिकों के चले जाने के आधी सदी बाद भी राष्ट्रवाद को बदनाम करना फैशन बना हुआ है । उदारतापूर्वक दी गई छात्रवृत्तियां यह सुनिश्चित करती हैं कि-ऑक्सब्रिज शिकागो अथवा इनसे भी कुछ कमतर दर्जे के कैनबरा से निकलने वाले विचारों का दबदबा कायम रहे । कुछ समय बाद कट निंदा का रूप बदल जाता है । कैंब्रिज विचारधारा ने भी बहुत पलटी खाई है । 1960 के दशक में वह राष्ट्रवाद पर प्रत्यक्ष और सामने से हमला करता था और राष्ट्रवादी क्षेत्र में राजनीति को मुर्गों की लड़ाई कह कर उसे बदनाम किया जाता था । जब इसका भाव गिर गया तो प्रांत और इलाके के तोपखाने से हमला किया गया। अखिल भारतीय इतिहास को छोड़ दिया गया क्योंकि इसमें कथित रूप से सामान्य बातें थीं । प्रांतीय तथा स्थानीय क्षेत्रों पर जोर देने का परोक्ष अर्थ यह हुआ कि अखिल भारतीय राजनीति और राष्ट्रवादी सरोकार फिजूल हो गए हैं । साम्राज्यवादी इतिहास लेखन से सबालटर्न दृष्टि से लिखे गए इतिहास का घनिष्ठ संबंध है इस बात को काफी व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है । सबालटर्न इतिहासकारों ने राष्ट्रवाद की यह कह कर निंदा की है कि वह निम्नवर्गीय ( संबालटर्न ) प्रतिरोध लिंग और संस्कृति के वास्तविक मुद्दों से कटा हुआ है । भारतीय श्वाधीनता संग्राम के विराट नाट्य दृश्य में भारत के विभाजन (स्वाधीनता का नहीं ) की इतिहास महत्वहीन और असंगत मूलभाव बनकर रह गया है ।॥ इस दौर के सारे इतिहास लेखन को (इसमें कट्टर मार्क्सवादी भी हैं ) सरकारी अभिजनवादी और विभाजन के प्रामाणिक भोगे हुए अनुभव से शून्य बता कर खारिज कर दिया गया है । राष्ट्रीय आंदोलन के लिए
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