हिन्दुस्तान की पुरानी सभ्यता | Hindustan Ki Purani Sabhyata

Book Image : हिन्दुस्तान की पुरानी सभ्यता  - Hindustan Ki Purani Sabhyata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्प हिन्दुस्तान को पुरानी सभ्यता हुआ है कि तिब्बत श्र तुकिस्तान से या यों कहना चाहिये कि मंगोलियन संसार से हिन्दुस्तान का सम्बन्ध कम रहा । उत्तर के दरें इतने छोटे ठंढे आर डरावने हैं कि उनमें हो कर झ्राना-जाना बहुत मुश्किल है । उत्तर-पुरब की तरफ़ पव॑त श्रेणी नीची हो गई हैं श्रौर इसलिए कुछ श्रामद- रफ़्त भी होती रही है। उधर से कुछ मंगोलियन झाकर श्रासाम या शायद पूर्व बंगाल में भी बसे थे । पर इस तरफ़ का प्रदेश जंगलों पर जंगली जातियों से ऐसा घिरा है कि इस श्रोर से व्यापारिक श्रौर मानसिक सम्बन्ध बहुत नहीं हो सका । चीन श्रौर हिन्दुस्तान से जो सम्पकं था वह उयादातर समुद्र की राह से या मध्य-एशिया के द्वारा था। इसके विपरीत हिमालय पहाड़ की उत्तर-पश्चिमी नीची घाटियों के दरों ने हिन्दुस्तान के सारे इतिहास पर अपनी छाप लगा दी है । इस तरफ़ कई दरें हैं जिनमें होकर झ्रायं लोग हिन्दुस्तान श्राये थे श्र उनके पीछे ईरानी ग्रीक कुशन सिधियन हु अफ़गान श्रौर तु ग्राये उन्होंने हिन्दुस्तान की राजनीत समाज श्रौर सभ्यता पर क्रान्तिकारी प्रभाव डाला । इन रास्तों से ११वीं ई० सदी तक मध्य-एडिया पूर्वी एशिया श्रोर योरप से व्यापार भी बहुत होता रहा श्र साहित्य कला दहन के विचार भी श्राते-जाते रहे । उत्तर का मेंदान जिसमें सिन्ध गड्जा ब्रह्मपुत्र प्रौर सहायक नदियाँ बहुती हैं दुनिया के बड़े उपजाऊ श्र श्राबाद प्रदेशों में गिना जाता है । कलकत्ते से पेशावर तक चले जाइये कहीं कोई पहाड़ी या टीला न उत्तर का सेदान मिलेगा कहीं कोई रेगिस्तान न मिलेगा । हर जगह हरे- भरे खेत लहराते हैं खेती के लिये उतना परिश्रम नहीं करना पड़ता जितना इंग्लिस्तान फ्रांस जमंनी इत्यादि ठंढे श्रोर कुछ-कुछ पहाड़ी देशों में करना पड़ता है । सदा से खेती ही यहाँ का प्रधान उद्योग रही है श्रौर सारी सभ्यता पर खेती की प्रधानता की मुहर-सी लग गई है । जनता ज्यादातर गाँवों में रहती है गाँव ही जीवन का केन्द्र हैं राजनैतिक सज्ृठन का आ्राधार है श्राधिक जीवन का मूल है । इस मैदान में कोई प्राकृतिक रुकावट उत्तर-पूरब कही पवत श्रेणी उत्तर-पच्छिस की घादियाँ




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