साहित्य और कला | Saahity Aur Kalaa

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Saahity Aur Kalaa by विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य की मूल प्रेरणाएं ११ में से हैं किन्तु ये अधिक परिष्कृत और परिमार्जित हैं । साहित्य और कविता में वासना का उन्नयन या पयु त्थान (501)1018- ४०0) हो जाता है । जैसे निराश प्रेम का देश-प्रेम में पयु त्थान दो जाता है वैसे ही इश्वर प्रेम या प्रकृति प्रेम के रूप में वह साहित्य में आ जाता है। फ्राइड से प्रभावित लोग ऐसा ही मानते हैं । एडल्लर महोदय किसी अभाव या क्षति की पूर्ति को जीवन की मूल प्ररक शक्ति मानते हैं। बच्चा छुटपन से ही किसी शारीरिक या परिस्थिति सम्बन्धी कमी का अनुभव करता है । उसके मन में हीनता-भाव की एक गुत्थी जिसको अज्जरेजी में (1एटा10१1४ 0077165) कहते हद बन जाती है। उसी से प्र रित हो वह अपनी कमी को पूणे करने के लिए भले या बुरे उपाय काम में लाया करता है। यही क्षति-पूर्ति का भाव उसके सारे जीवन को प्रभावित करता है। इस हिसाब से साहित्य- निर्माण हमारी किसी क्षति के पूर्ति के रूप में ही होता है। इसके कुछ उदाहरण भी दिये जा सकते हैं । भ्रन्घे लोगों की कल्पना अधिक बढ़ जाती है क्योंकि वे उसी के द्वारा अपनी क्षति-पूर्ति करते हैं । अक्षिद्दीन सूर और मिल्टन इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । विधोवियन भी प्न्धा था । कबीर को श्रपने जुलाहे- पन का हीनता-भाव था आर इसीलिए वे कह उठते थे तू काशी का बाम्दन आओ में काशी का जुलाहा इसी के कारण उनमें कुछ अ्रहंभाव भी बढ़ा हुआ था । वे हिन्दू-मुसलमान दोनों को फटकारते श्रौर श्रपने को देवताओं और मुनियों से श्र पल मानते थे। उन्होंने अपनी भीनीबीनी चद्रिया में दाग नहीं लगने दिया था । जायसी को भी अपनी कुरूपता का गव था --




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