हिंदी गद्य की रूप रेखा | Hindi Gadh Ki Roop Reka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.56 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निर्माण-फाल 4 सत्सम शब्दों के प्रयोग से भाषा का सुनहला भविष्य यद्दीं से रिखाई देने लग जाता है । जिस प्रकार सरबी-फ़ारसी की मिली जुई भाषा फो उदं फदते हैं उसी प्रकार इस संस्कृतमिश्रित दिंदी को उड़ चाले भाखा के नाम से पुकारने लगे । मुन्शीजी ने द्विन्दू-समाज की शिष्ट-व्यवद्दार की भाषा को दी छापनाया यह उनके सुखसागर से स्पष्ट हैं । इस प्रकार दमें उनकी गद्य-शैली में खड़ी घोली के स्ववन्त्र उदाद्दरण देखने को मिलते हैं । संक्षेप में मुन्शी जी ने खड़ो चोली के भावी साहित्यिक रूप का छाभास इस समय में दी दे दिया । उनकी भाषा को यह उदादरण देखिए -- घन्य कद्िये राजा दु्घोच फो कि नारायण की घार्या ्रपने सीस पर चढ़ाई । जो मद्दाराज फी थाग्या श्रौर दधीच के दाए का यज्न न दोठा तो ग्यारद लनम ताई दधासुर से युद्ध में सरयर श्ौर प्रयल न द्ोता घौर न जय पायता 1 सैयद इंशाश्रज्लाखोँ ने सन् १७६८-१८३० हं० के बीच में हिन्दी-गय की डदयभानचरित या रानी केतकी की कहानी लिखी । च तक के गय-सादित्य में यह एक नवोन मायोजन है। मुन्शी जी गया में कथा का रूप लेकर श्ागे श्ञाये थे खाँ साइव ने उसे कद्दानी का रूप दिया । खाँ साहब मौजी श्ञादमी थे । उनकी रचनाएं प्रायः मनो विनोद के लिए हुआ करती थीं । उनकी मनोयृत्ति ठेठ ढिन्दी लिखने की शोर ही थी । शत खाँ साहब के गया में हमें शब्दों का तद्धव सर्प देखने को मिलेगा । देशज रूप में तीन प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है । प्रथम बार की चोली के शब्द जैसे ध्रबी फ़ारसी लुरकी 1 द्वितीय देद्दाती था गवारी बोलो के शब्द जैसे घ्रजभापषा अवधी श्ादि के | छतोय भाखापन अधथाच संस्कृत के शब्दों का मेल । कहने का छभिप्राय यह है कि उन्होंने सर्वे्रथम रचिशुद्ध दिंदवी में लिखने का प्रयत्त किया । लेकिन इस समय
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