कर्म मीमांसा दर्शन भाग 2 | Karm Mimansa Darshan Bhag-2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : कर्म मीमांसा दर्शन भाग 2  - Karm Mimansa Darshan Bhag-2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरु चरण कमल - Guru Charan Kamal

Add Infomation AboutGuru Charan Kamal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ई कर्मममी माँसा-दुशेन । सद्दायवासे प्रस्फुटित शोता डुध्ा जीवको मजुष्ययोनिमें पहुंचा, देता है, तय मनुष्य पंचकोपकी पूर्णतासे पूर्णशक्तिविशिप्ट होकर स्वयं नवीन संस्कार संग्रद्द फरनेके उपयोगी झधिकाय्को प्राप्त दो जाता है 'ोर इच्छाशक्ति तथा क्रियाशक्तिकों श्वपने झधीन करके नये ढंगके नाना संस्कार्येफा संग्रद्द करता है, यही नवीन संस्फार- समूदद झस्पाभाविक कहाते हैं पर घासनावैचिच्यफे फारण ये श्रन्त होते हैं । स्टतिशाख्रमें भी कहा हैः-- हे 'अमन्तारतस्य विज्ञेया मेदा बन्घनहेत्व !। जीचके बन्धनकारफ ये भेद चुत होते हैं । प्रकृतिके प्रचाहसे उत्पन्न होनेसे स्वाभाविक संस्कार एक है श्र मजुग्यकी इच्छासे सत्पन्न होनेसे छास्पाभाविक संस्फार अनन्त हैं; क्योकि, मलुष्यो- की प्रकुतिके वैचिज्यके कारण चासनायवैचिश््य झीर वासनावैचिच्यके कारण ' संस्कारवैचिघ्य होना स्वतः सिद्ध है। भ्ररुतिके तीनो युणके घातप्रतिघातसे चैपस्यावस्था म्छ्डति अनन्त वैथिन्यफों धारण करती हे, इस कारण मजुष्य-प्ररति भी डानन्त्रुपको घाघ होती है; अतः स्वाभाविक संस्कार्यका भी शानन्त रुप होना सिद्ध ही है॥ & ॥ न उसका प्रारम्भ कहांसे होता है, सो कहा जाता है।-- मनुष्ययोनिमें उसका मारम्भ होता है ॥ १० ॥ , . खामाविक-सस्कारका घ्ारम्भ जिस प्रफार प्रारतिक लीलाराज्य- रूपी मददासागरके चिज्ड़मन्थिरूपी चुद चुदुमें होता है, उसी प्रकार स्वाभाविक संस्कार मजुप्यकी योनिमें छानेपर घारम्भ दोता है । चिज़ड़ग्रन्थि की संधि, उद्धिज्यसे स्वेदजयोनिमें आानेकी खन्धि, स्वेद- जले धरडजयोनिमे शानेकी सन्धि और झगडजसे जरायुजयोनिमें शानेकी सन्धि, इन चार सन्धियोंमं जीव पणाघीन दी रदता है छौर तद्बन्तर सजुप्पयोनिमें पहुँचनेकी सन्धघिमें स्वाधीनताका झधि- कार प्राप्त करके मजुष्ययोनिमें पहुंचते दो इच्छाशरक्ति और क्रिया- « शक्तिके विचारसे स्वाधीनता लाभ कर लेता है। इसी स्वाधी- ,नताके साथही साथ उसके भोतरकी वैचिज्यपूर्ण चालनासोंके -झनुसार उसमें झस्वाभाविक संस्कार संग्रद्द होने छगते हैं। साले तदारम्भ८॥ १०॥ हु केक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now