कर्म मीमांसा | Karm Mimansa

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Karm Mimansa by वैद्यनाथ शास्त्री - Vaidya Nath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् क्मेंन्मीमांसा इसारे मन, शरीर शादि इन्द्रियों सेज्ञो २ ध्यापार दोते हैं थे प्रचूत्ति हू । प्रत्येक इत्दिय अपनी झपनी प्रवृत्ति रखते हैं । प्रवृत्ति को यास्तविक विषेचन धाद में दोगा परन्तु पहां पर इतना ही समभना चाहिए कि प्रदुष्ति झगद का करण दै । किसी रुप में प्रबुत्ति पीति झर देप वश दोती दै । कहीं राग से प्रवृत्ति श्र की ट्रेप से प्रदत्ति दोती दै । दम प्रति दिन स्त्री पुर्नों में झनुराग देखते हैं । यदि कोई उन पर इमला करे तो दम मन्यु पैदा होकर हम उससे द्ेप कर उसे मारने था स्ुद मिटने पर हैबार दोजाते हैं । इसलिये यदद खुतर्ग सिख है कि संसार मैं साधघारणतया जितनी भ्रघूत्तियें हैं चे राग पर्ष द्रेप से जस्य ही हैं । त्त: राग शरीर द्वेप म्रदुत्ति के कारण ठददरे । राम और देप भी श्ययं सिद्ध अथवा स्वयंभू नहीं दै । उन्हें भी किसी से प्रादुर्माध मिलता दै । उनके प्रादुर्भाव का कारण अशान झर्थात्‌ चिपरीत जान अथवा मिथ्याकान दे । संसार के पदार्थों में शाम टेप होने का कारण मानय का 'अपना परिथ्याह्यान दी है अत्य कुछ नदीं । एक साधारणु स्थिति का सदस्य यद प्रश्न कर: सकता दि कि फ्या उसका पुत्र आदि में सनेड रागयश दै झौर इसका कारण मिथ्याहान हो है ! यथपि ध्ययद्दार की शष्टि से देखने पर प्रश्न कुछ जटिन्र मालूम पढ़ता दै परन्तु विवेकी इसका समाधान पद्दी करेगा कि हां ! यद मिध्याज्ञान ज्नित ही दै। श्रपने पुध में सम सबको दे परम्तु चद्ी राग दूसरे के पुत्र में नददों दिखलाई पढ़ता । कमी कभी तो दूसरे के चुश्नों में लोगों फो राग के झतिरिक्त दरेध नदीं नहीं; परयल द्ंघ भी करते देखा जाता है । जब ऐसी स्थिति दै तो यह न्ीं कहा जा सफता कि राग किसी का स्पमाव दै । वद किसी निमित्तदश मजुष्य में दै। 'झपने पु में राग का निमित्त मनुष्य बरी डसके घति ममता है | अपने पुध के सा डसका 'मिर' लगा हुआ दै जो राग का




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