वैदिक समयके सैन्यकी शिक्षा और रचना | Vaidik Samayke Sainyki Shiksha Aur Rachana

Vaidik Samayke Sainyki Shiksha Aur Rachana by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1७ ज द द (पु बेदिक समय नाम हैं इनमें सैनिकॉकी संख्याते ये बनते हैं । दार्धकि विपयमें चेदमेत्रॉंमिं दुसा चर्णन शाया है-- « ते च। बाघ मारतं सुन्नयः गिरा । ऋ- २1३०1११ थापका चद् सब बाणीद्वारा प्रधींसा योग्य है 1 लर्थात्‌ प्रद्ंसा करने योरय कार्य झापके सेनिकीय संघद्वारा दोंता है। ते च घाघे रधानामू 1 कं * शापका रोका संघ है। * पदादठी सेनिकॉका संघ डोता है वैप्ता रथॉवाढी सेनाका भी सैघ दोता है । इस तरद पदाति सिनिक, रथी सैनिक, घुदसवार सैनिक, वैमानिक सैनिक ऐसे अनेक संघ सरुदोंकी सेनामें दोते हैं । ते चः धार रयेशुम त्वेपे जाहुवे । कऋ. पाणद1५९ * तुस्द्दारा घदद रथोपिं दो सनेवाठा बठवानू संघ है, ठसकों में घुढाता हूं 17 यदां रथमें घो मनेवाके संघका चर्णन है। प्र चः घार्घाय घूष्यये सवेपयुस्राय झुष्मिणे 1 न. १1३७४ नापके धूर तेन्नर्वी चकवान संघके लिये इम संमान हर्पण करते दिं ।! चधा--+ चुप्णे शर्घाय छुमखाप चघसे खुवृक्ति भर । ऋ. १1६ ४।१ * ग्रठवानू उत्तम पूजनीय, विशेष श्रेष्ठ कर्म करनेवाछे घीरोंके संघकी प्रशंसा कर 1” शौर दुखिये-- प्र ्यार्चाय मारताय खभानवे प्वतच्युते सचेत। ऊऋ, पाण पे दार्घाय प्र यज्यवे खुखादूय तवदखे मन्ददिए घुनिनताय धावसे । च. ५८४१ * मरतोंके शव्यत चेजस्वी पर्वे्तों को भी दिछानेव।छे लेघडा सरकार करो 1”, * नव पूज्य, उत्तम सुन्दर भाभूपण धारीरपर घारण करनेवाल, चछदान्‌ , नावन्दसे इ्ट कार्य करनेवाडे, धानुकों उप्ाइनेवाले, लतिमलवान्‌ सरवॉकि संघका स्वागत करो | * इन मन्दोंमिं थे सर वीरोंकि संघ फ्रया करते हैं, इनका घछ फंसा होता दे भादि बहुत बा मननीय हैं । सा घीर-- या दार्घाय मासताय स्वभानवे शवा ममूत्य घुसत 1 छू. दाश्८।त२ पड ७ के सेन्यकी रचना न दिवः द्वार्धाय घुचय मनीपा उठा अस्पूघन 1 ऋ, दु।दद1३1 * मदन वीरोंके तेजस्त्री संघके लिये मक्षय घन दें दो 1 चीरोंके संघके लिये उम्र चीरताकों प्रसचनेवाले घुद्ध स्व चक्कते रहें । ! इन वीरोंकें कान्य झुद्ध दोते हैं, वीर्य वदानेवाले हैं, देनसिठाका संवघेन करनेवाले हैं इस कारण वे काव्य यानें योग्य हैं । जो ये काव्य या स्तोत्र गारयेंगे वे उस वीर्य- शोर्यादि गुर्णोंसे युक्त होंगे । घौर देखिये-+ धष्णे दाघाय मारताय मरध्च दया चुप प्रयावने ॥ न, ८1१०९ * निनका माक्रमण बलशाली दोता हि उस चीरोंके संघ के लिये शन्न भरपूर दे दो 1 तथा शौर मी देखो-- उग्र च साज। वस्यरा वास । अघ मसाय््रः गणः लुचिप्मान्‌। झुस्रों व झुप्म! छुष्पी मनांखि 'घुनिर्मुनिरिव झार्घस्य घूप्णो। ॥ ऋण जाप छ-द है घोरो ! भापका चल यढा प्रस्र है, क्षापके बढ उत्तम स्थिर हूँ । भीर मसत वीरॉका संघ बढ़ा घलशाली है | ज्ञापका वल निर्मछ है, मन धायुपर क्रोध करने वाले हैं । शापके नभाक़मणका चेग मननशी सुनिके समान दिचारसे दोठा हैं, भापके शवुपर लाफ़मण ऐसे निर्दोष दोते हूं | ” ये चीर दाचुपर चेगसे लाफ़मण करते हैं यापि उनमें दाघुझा नादा करनेका सामथ्य दोनेपर मी थे बविधारसे साक्रमण नहीं करते, परन्तु घषिमसुनिके समान वे विचार चूवेक जो करना है वदद काले हैं, उनमें धावुपर फ्रोघ हैं, शानका नाश करनेकी इच्छा हे, पर झविचार नहीं दै । इस कारण इन बीरोॉंकों यच प्राप्त होता है । इस कारण इन चोहोंका भादर होना चाहिये । चधा-न कील चर दार्घों मादतं अनवाण रखें झुममू | कृप्चा मभि प्र गायत ॥ 1 ये पृपतीसिक्कारिसि साके चायीमिराजिमि: अज्ञायत स्वसानवः ही १ ॥ ऋण इज 1-र * च्ोडा-सर्दानी खेल सलनेसें कुदाल, झापसमें झगड़ा * न करने, रथमें घो भनेवादे, मच वीरोंके संघका दे




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