महाभारत की समालोचना तृतीय भाग जय इतिहास | Mahabharat ki Samalochna Tratiya Bhag Jay Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय 4] .. जय इतिहास । ष्छ रे999क99959989953998999329299<656८6<६६८८९४९<६९९८८८८५९७८८६८८९ट८९६<९५७६€९९९९६९५६<५६८६५४ अ्थ- जो राजा अपने प्रिय और सुखका पर्वाह छाड़ कर राज्य लेंगी बढ़ाना चाहता भर है बह राजा थोंडे ही समयमें मंत्रियों का आनंद बढ़ाता है । पुत्र उबाच । श्र श धर किं नु ते मामपशयन्त्या। एथिच्या अपि स्चेया । 1 कं किमाभरणकूत्य ते कि भोगैजीवितेन वा. ॥ ३९ ॥ [ ?.. अन्वया- पत्र उवाच- मां अपरयन्त्या। ते स्वया पथिव्या अपि किं हु, ) १ आमरणकृत्य॑ हि, मोगे। जीवितेन वा किमू # ३९ ॥ अर्थ- पत्र बोला- मुझे न देखती हुईं तुझे सब एथ्वीसे क्या, तुझे आशूषणोंसे क्या पर कर र भोग तथा जीवित भी क्या लाभ है ? ॥ ३९॥ क 1 भावार्थ- हे माता । मेरे मर जानेपर राज्य धन और भोग अथना दीप आयुष्य प्राप्त होनेसे भी तुझे कौनसा सुख प्राप्त होगा ! क्यों कि तू जो युद्धका मार्ग मुझे बता पर रही हैं बह करने पर, संभव है कि में उसमें मर जाऊं, तो फिर मेरे मर जानेंके पात्‌ ? तुझे सुख केसे हो सकता है! 1 मातोषाच । | | किमद्यकानां ये लोका द्विषन्तस्तानवाशुयु! | 1 द ये त्वादतात्मनां लोका। सुहददस्तान्त्रजन्तु ना ॥ ४० ॥ ] 1 अन्वया- माता उवाच- किमधकानां ये लोका। तानू दविपन्त! अवाधुयुग । ये हु ) | आइदतार्मनां ठोका। ताद्‌ न' सुहद। ब्रजन्तु 0 ४० ॥ हि ) ॥. अर्थ-- माता बोठी-- जो अवखाएं आठसी भूखे ठोगोंको प्राप्त होती हैं उन हे अवस्थाशोंका हमारे सब शन्नु प्राप्त हों और जो आदरको पाये हुए लोगोंके सब खान ग * हैं उनको हमारे मित्रजन प्राप्त हों ॥ ४० ॥ ) भ्रत्पै्विहीयमानानां परपिण्डोपजीविनाम । कर कपणानामसत्त्वानां मा बत्तिमबुवतिथा। . ॥ ४१॥ | ं ं | श्र अन्वयः- सूले। विहीयमानानां, परपिण्डोपजीविनां, कृपानां, जसच्चानां ब्रातति मा अनुवर्तिथा। ॥ ४१ ॥ जअर्भ-- नौकर जिनको छोड देते हैं; जो दुसरेके दिये अन्नपर शुजारा करत ६; जो दीन और निःसच हैं उन ठोगोंकी द्तिका अवरम्बन महू कर ॥ ४ ९॥ ९९६९९ ९९:6७९८९९५%०७७७०००9०9००७०8०99७9393999] 9358899999999993फि8983299039 अर हैं




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