महाभारत की समालोचना तृतीय भाग जय इतिहास | Mahabharat ki Samalochna Tratiya Bhag Jay Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.5 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अ्थ- जो राजा अपने प्रिय और सुखका पर्वाह छाड़ कर राज्य लेंगी बढ़ाना चाहता
भर
है बह राजा थोंडे ही समयमें मंत्रियों का आनंद बढ़ाता है ।
पुत्र उबाच ।
श्र श
धर किं नु ते मामपशयन्त्या। एथिच्या अपि स्चेया । 1
कं किमाभरणकूत्य ते कि भोगैजीवितेन वा. ॥ ३९ ॥ [
?.. अन्वया- पत्र उवाच- मां अपरयन्त्या। ते स्वया पथिव्या अपि किं हु, )
१ आमरणकृत्य॑ हि, मोगे। जीवितेन वा किमू # ३९ ॥
अर्थ- पत्र बोला- मुझे न देखती हुईं तुझे सब एथ्वीसे क्या, तुझे आशूषणोंसे क्या पर
कर र भोग तथा जीवित भी क्या लाभ है ? ॥ ३९॥ क
1 भावार्थ- हे माता । मेरे मर जानेपर राज्य धन और भोग अथना दीप आयुष्य
प्राप्त होनेसे भी तुझे कौनसा सुख प्राप्त होगा ! क्यों कि तू जो युद्धका मार्ग मुझे बता
पर रही हैं बह करने पर, संभव है कि में उसमें मर जाऊं, तो फिर मेरे मर जानेंके पात्
? तुझे सुख केसे हो सकता है!
1 मातोषाच । |
| किमद्यकानां ये लोका द्विषन्तस्तानवाशुयु! | 1
द ये त्वादतात्मनां लोका। सुहददस्तान्त्रजन्तु ना ॥ ४० ॥ ]
1 अन्वया- माता उवाच- किमधकानां ये लोका। तानू दविपन्त! अवाधुयुग । ये हु )
| आइदतार्मनां ठोका। ताद् न' सुहद। ब्रजन्तु 0 ४० ॥ हि )
॥. अर्थ-- माता बोठी-- जो अवखाएं आठसी भूखे ठोगोंको प्राप्त होती हैं उन
हे अवस्थाशोंका हमारे सब शन्नु प्राप्त हों और जो आदरको पाये हुए लोगोंके सब खान ग
* हैं उनको हमारे मित्रजन प्राप्त हों ॥ ४० ॥
) भ्रत्पै्विहीयमानानां परपिण्डोपजीविनाम । कर
कपणानामसत्त्वानां मा बत्तिमबुवतिथा। . ॥ ४१॥ |
ं ं
|
श्र
अन्वयः- सूले। विहीयमानानां, परपिण्डोपजीविनां, कृपानां, जसच्चानां ब्रातति
मा अनुवर्तिथा। ॥ ४१ ॥
जअर्भ-- नौकर जिनको छोड देते हैं; जो दुसरेके दिये अन्नपर शुजारा करत ६; जो
दीन और निःसच हैं उन ठोगोंकी द्तिका अवरम्बन महू कर ॥ ४ ९॥
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