भर्तृहरिकृतम् | Bhartrihari kratam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.52 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नीतिशतकम । - १४
केशादि पुरुपॉकों भूपित नहीं करसकते केवल वह वाणी जो संस्का-
रयुक्त धारणकी गई हो सो पुरुपको शूपित करसकती है और
सब भूषण अवश्य क्षय होजाते हैं परन्तु केवल चाणीददीका भूषण
भूषणुकी ठौर रहजाते हैं ॥ १९ ॥
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रस््छन्नगुप्त॑ धनम्
विद्या भोगकरी यशसुखकरी विद्या गुरूणां गुरु ॥
विद्या बंधुजनों विदेशागमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसुप्ूजिता नहि धन विद्याविह्ीनः पशुशा२०॥
( सं+ टी० ) विद्येति ! पुरुपस्प विद्याव्यतिरिक्त॑ यद्धनं तद्धनें न भव-
ति तस्तीयतें तस्करादिभिनीयते गोप्य॑ न भवति अतो विद्या नाम धर्न त-
त्समीचीनं वहुगुणम्। कथंभूत॑ विद्यारूर्य धनम् नरस्याधिकं रूप॑ करोति तथा
च पम्रच्छन्न॑ युप्तं धन भवति विद्याभोगकरी भोगान्करोति यश कीर्ति सुखे च
करोति । विद्या गुरूणां गुरु। क्द्रगुरव+ सवविद्यासंपूर्ण प्राज्ं अष्टुमायाति स
माक्ष गुरूणामपि गुरुः । अय च ग़णाति हितमुपदिशातीति शुरुरिति युरु-
पदव्याखूयानमतों हितकर्नी विदेव विदेदागमने विद्या बंधुजनः विदेदी.
थे जनास्ते विद्या बंधुजना एव भवंति विद्या पर॑ देवत॑ राजसुपूजिता
» विद्या येपां ते राज्ञां सभायां पूजिता भवंति । तथा धनाठ्या। पूजिता न
भवंति अतो विद्याविद्दीनो यः स पझुरेव बोद्धव्य+ ॥ २० ॥
( भा० टी० ) विव्यारुपी वस्तु मनुष्यका अधिकरूप और
न के 3 कि + स
छिपाहुआ अंतरधन है और विद्याही भोग यश और सुखकी
के हक- ७५० #५, गुरुहे क श ९
संपादन करनेवाठी और गुरूओंकी गुरुहै परदेशमें विद्याही नंघुजन
3 #७, व ५५.
है और विद्याही परमदेवता है और विद्याहदी . राजाहोगोंमें पूज्य
च्झ७ ७ # कि न ५
, है कुछ धन नहीं पूजित है इसलिये विव्याविहीन नर पशु हैं॥२०॥
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