मराठों का नवीन इतिहास | Marathon Ka Navin Itihas

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Marathon Ka Navin Itihas by गोविन्द सखाराम सरदेसाई - Govind Sakharam Sardesai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारायणराव का नौ सास का शासन ७७ राज्यारोहण के तुरन्त पश्चात पुना के दरबार से उसकी कार्यक्षमता के विषय में यह मत प्राप्त हुआ था--श्रीमन्त अधी र तथा कोपशील हैं उनकी चंच- लता स्पष्ट झलकती है । उनको तुच्छ तथा अचुत्तरदायी व्यक्तियों से जो सुचना प्राप्त होती है उस पर बिना विचार किये हुए कार्य कर बंठते हैं । वह भभी तक शिशु हैं तथा सखाराम बापु के मागंदर्शन का अनुसरण नहीं करते । सिंह तो चला गया अब गीदड़ ही रह गये हैं । ईश्वर ही राज्य का रक्षक है । आरम्भ में कुछ समय तक चाचा तथा भतीजे में अच्छी प्रकार बनती रही । नारायणराव शीघ्र ही मृत पेशवा की कठोर वृत्ति का अनुकरण करने लगा । वह सखाराम बापु तथा अन्य वृद्ध अधिकारियों का स्पष्ट अपमान करने से अपने को नहीं रोक पाता था । हमको इस समय के राजनीतिक क्षितिज का निरीक्षण करना चाहिए । ऐसा मालूम होता था कि समश्त भारत में क्षणिक शान्ति विद्यमान है । महादजी शिन्दे तथा अन्य मराठा सरदार दिल्‍ली के शाही कार्यों में व्यस्त थे तथा उत्तर भारत के जिलों में राजस्व संग्रह कर रहे थे जहाँ मराठा शक्ति की स्थापना उसी समय पर हुई थी । मराठों के मित्र गाजीउद्दी न इमा दुल्मुल्क की उत्कट इच्छा थी कि महादजी को पुन शाही वजीर के पद पर नियुक्त कर दिया जाये जिस पर वह पहले स्थित था । इस समय वह गृहहीन घुमवकड़ था तथा अपने पक्ष को उपस्थित करने के लिए दिसम्बर १७७९२ ई० में स्वयं पूना गया जिससे नये पेशवा को उत्तरी प्रदेश में काये-प्रबन्ध की नयी योजना लागू करने के लिए उकसाये । 53 सम्राटू शाहआलम को गाजीउद्दीन से घोर घृणा थी क्योंकि उसने उसके पिंता की हत्या की थी तथा इस राक्षस के प्रति किसी प्रकार की अनुकम्पा के लिए वह अपनी अनुमति नहीं दे सकता था । गाजीउद्दीन मराठों का पुराना मित्र था और उसने पानीपत के युद्ध से पहुले मराठों का बहुत हित किया था जिससे उसकी वर्तमान दरिद्रावस्था में पुना में लोगों को उससे बहुत सहानुभूति थी । नाना फड़निस ने उचित समय पर उसके वापस होने से पहले ही उसे बुन्देलखण्ड में एक छोटी-सी जागीर दे दी ताकि नारायणराव के दिखावटी वचन की पूर्ति हो सके । यह वचन सम्भवतः स्वयं नारायणराव ने उसको दिया था । भूतपूर्व नवाब मी रकासिम मराठों का दूसरा महत्त्वपूर्ण सित्र था जिसने इस समय अपने भरण-पोषण के लिए इसी प्रकार की याचना की थी । परन्तु उसे सन्तुष्ट करना पेशवा के अधिकार की बात नहीं थी । दक्षिण में मेसूर का र खरे १२४३ 3. पुरन्दर दे ११२ खरे १२४३




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