देवर - भाभी | Devar-Bhabhi

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Devar-Bhabhi by चिरंजीलाल पाराशर - Chiranjilal Parashar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है लेकिन भाभो साहिया की जिर्देगी भी चेन से रहीं क्रट पाती । म्रंकशर ऐसी भाभियों या तो मेसुद्धि फी नलिरक्षर भट्टापार्य होती है ्रथवा उन परिवारों नी लाइली वेडियां होती है--जिनके गा सुखंता गमी सम का जाप गायनी मंत्र की तरह होता रेहुत है। मर रही ईष्य खु भाभियां वोब्रा-तोथा 1 इनसे तो खुदा बचायें । इनकी शुरत देखकर यमपूत भी दर से ही नमस्कार कर रास्ता छोड़ देते है। यों समभशिये कि ऐसी भाभी फिसी श्राचीन पाप के पालस्वरूप ही वर्तमान जीवन में किसी युध्रगा को प्राप्त होती हैं । या कहिये कि कई पूर्व जन्म को शत्रु वर्तमान काल में भाभी के रूप में जस्म लेकर परेशान करने के लिए भा जाता है। सी भाभी के चेहरे पर हमेशा मर्विसया कीर्तन करती तजर झाती हैं। हर गगय मुख की पशा ऐसी दोभायमान रहती है मानो कहीं से झपपानिप होकर भामी जी आरा रही हों । माथे पर भासडानतंगल बैप की गहरी के सकी जैगी रेखाएँ फँली रहती हैं। शौर सुख हीराएुड की तरह रादा खुला रहता है । ाएती में शिरास के स्थान पर खटास भौर कइवाहट मिफाफर ऐसी मधुर भरावाण निकालती हैं मानों जा सुरों की बसु को गो वेबफूफ हुक रहा हो । प्रमः इनका बढ़ फर्गुकिद्ू रवर घरेलू ात्ति में गई सिरहनों का शुजन मौके बे-मौफे करता रहता है। गदि कभी भूल से देवर की ओर देती भी है तो उतने दो निर्मल प्रेम से देखती है जितने नि प्यार से बिल्ली कंपूतर को या नेथला साँप फो पेसवा है । देवर के लिए ऐगी भागी से कुछ प्राप्त मार सेना रेत से तेल निकालने के भ्रयत्म के समान होता है । उसने लिये यनी बहुत होता है नि जान सलामत रफे भौर दिन थिना भाभी जी मी बीटफार या पुरस्कार या काँबनफॉच के कह शा । वयीफि ने इसे देवर को लाना भाता हैं न पहनना चुह्ाता हैं । देवर की साता पीता देख कर साभी मी जले सुनकर हु की तर ऐंठी दिखाई देती हैं। देवर को शागा शिलाना |




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