प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ट कहानियाँ | Prem Chandra Ki Sarvasheshth Kahaniyan
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.54 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्६ प्रेसचंद की सर्वश्रेष्ठ कद्दानियाँ चौधरी के पास गये | चौघरी ने तुरन्त बता दिया मबेशीखाने में है श्रौर वहीं मिला । जिननात श्राकर उन्हें सारे जान की खबरें दे जाते हैं । अब उसकी समभ में आआ गयां कि चौधरी के पास क्यों इतना घन है श्रौर क्यों उनका इतना सम्मान है । श्रागे चले । यदद पुलिस लाइन है । यहीं सब कानिसटिबिल कवायद करते हैं । रैटन फाय फो रात को बेचारे घूस-घूसकर पहरा देते हैं नहीं चोरियाँ हो जायँ । मोददसीन ने प्रतिबाद किया--यद्द कानिसटिषिल पहरा देते हैं तभी दुस बहुत जानते हो । झजी हजरत यही चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हैं सब इनसे मिलते हैं रात को ये लोग चोरों से तो कहते हैं चोरी करो श्रौर श्राप दूसरे मुदल्ले में जाकर जागते रहो | जागते रहो पुकारते हैं । जभी इन लोगों के पास इतने रुपये ्रते हैं । मेरे माम एक थाने में कानिसटिबिल हैं । बीस रुपया मद्दीना प्राते हैं लेकिन पचास रुपये घर मेजते हैं । श्रल्ला कसम । मैंने एक बार पूछा था कि मामूँ श्राप इतने रुपये कहाँ से पाते हैं हँसकर कहने लगे--बेठा अल्लाह देता है। फिर झाप ही बोले--इम लोग चाह तो एक दिन में लाखों मार लायें। दम तो इतना ही लेते हैं जिसमें शपनी बदनामी न दो श्रौर नौकरी न चली जाय । दामिद ने पूछा--यदद लोग चोरी करवाते हैं तो कोई इन्हें पकड़ता नद्दीं ? मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला-झरे पागल इन्हें कौन पकड़ेगा ? पकड़नेवाले तो यह लोग खुद हैं लेकिन श्रल्लाइ इन्हें सजा भी खूब देता है। हराम का माल दराम में जाता है । थोड़े ही दिन हुए मामूँ के घर श्ास लग गयी । सारी लेई-पूं जी जल मयी । एक बरतम-तक न ब्रचा । कई दिन पेड़ के नीप्चे सोये श्रल्ला कसम पेढ़ के
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Diya Pant
at 2020-09-22 04:23:20"गोदान"